वनों के प्राकृतिक एवं आर्थिक महत्व का वर्णन करें। अथवा, वन लगाने के महत्व के बारे में लिखें। Vanon Ke Prakriti AVN Arthik Mahatva Ka Varnan Karen. Athva Van Lagane Ke Mahatva Ke Bare Mein Likhen.
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वनों के प्राकृतिक एवं आर्थिक महत्व का वर्णन करें। अथवा, वन लगाने के महत्व के बारे में लिखें। Vanon Ke Prakriti AVN Arthik Mahatva Ka Varnan Karen. Athva Van Lagane Ke Mahatva Ke Bare Mein Likhen.

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 Ans. भारत में वर्तमान में 6,75538 वर्ग किलोमीटर भूमि पर वन है। सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्रफल के 20.55 प्रतिशत भाग में ही वन फैले हैं।

वनों के प्राकृतिक महत्त्व :

(i) बनों से नमी निकलती रहती है जिससे वायुमण्डल का तापमान सम होकर वातावरण आर्द्र बन जाता है जिससे वर्षा होती है।

(ii) वन क्षेत्र वर्षा के जल को स्पंज की भाति चूस लेते हैं, अतः निम्न प्रदेशों में बाढ़ के प्रकोप का भय नहीं रहता और जल का बहाव धीमी होने के कारण समीपवर्ती भूमि का क्षरण भी रूक जाता है।

(iii) वन प्रदेश वायु की तेजी को रोककर बहुत से भागों को शीत अथवा तेज बालू की आधियों के प्रभाव से मुक्त कर देते हैं।

(iv) ये वर्षा के जल को भूमि में रोक देते हैं और धीरे-धीरे बहने देते हैं। इससे मैदानी भागों में कुओं का जल तल से अधिक नीचे नहीं पहुंच पाता।

(v) वनों के वृक्षों से पत्तियां सूखकर गिरती हैं, वे धीरे-धीरे सड़-गलकर मिट्टी में मिल जाती हैं और भूमि को अधिक उपजाऊ बना देती है।

(vi) वन सुन्दर एवं मनमोहक दृश्य उपस्थित करते हैं और देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं। अतएव वे देशवासियों में सौन्दर्य भावना जाग्रत करते हैं और उन्हें सौन्दर्य एवं प्रकृति प्रेमी बनाते हैं।

(vii) घने वनों में कई प्रकार के कीड़े-मकोड़े तथा छोटे-छोटे असंख्य जीव-जन्तु रहते हैं जिन पर बड़े जीव निर्भर रहते हैं।

(viii) आज के बढ़ते प्रदूषण के सर्वव्यापी घातक प्रभाव से मुक्ति दिलाकर भूमि पर पर्यावरण सन्तुलन का आधार भी वन ही प्रदान कर सकते हैं। अतः यह आज भी मानव सभ्यता के पोषक एवं संरक्षक हैं।

वनों के आर्थिक महत्त्व :

(i) भारत की आर्थिक व्यवस्था में वनों का बड़ा स्थान है। वर्तमान में देश की राष्ट्रीय आय का लगभग 25 प्रतिशत कृषि उद्योग से प्राप्त होता है। इसमें लगभग 2 प्रतिशत वन सम्पत्ति द्वारा मिला है।

(ii) भारतीय वन, चारागाहों के अभाव में, लगभग 5½ करोड़ पशुओं को चराने की सुविधा प्रदान करते हैं। पशुओं की चराई के अतिरिक्त वन प्रदेश अनेक प्रकार के कन्द-मूल फल भी प्रदान करते हैं जिन पर ग्रामीणों की जीविका निर्भर करती है।

(iii) वन लगभग 60 लाख व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से दैनिक व्यवसाय देते हैं। ये लोग लकड़ी काटने, लकड़ी चीरने, वन वस्तुएं ढ़ोने, नाव, रस्सी, बान आदि तैयार करने तथा गोंद, लाख, राल, कन्द-मूल, जड़ी बूटियाँ, दवाइयाँ आदि एकत्रित करने लगे हैं। वन क्षेत्र में लगभग 2.5 करोड़ आदिवासियों का निवास स्थान है और उनके जीवन यापन एवं अनेक कुटीर उद्योगों का यही वन आधारभूत या महत्वपूर्ण साधन है। -

(iv) वनों से सरकार को निरन्तर अधिक आय होती रही है। यह आय 1981-82 में 204 करोड़ रूपये की हुई थी जो कि वर्तमान में बढ़कर लगभग 2,500 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष हो गई है।

(v) वनों से विविध मुख्य व गौण उपजों से निरन्तर अधिकाधिक आय प्राप्त होती रही है। गौण उपज से 1950 में 6 करोड़ रूपये, 1970 में 30 करोड़ रूपये एवं वर्तमान में इनसे होने वाली आय लगभग 18 गुणा बढ़ गयी है।

(vi) वनों से मुख्य उपज के रूप में लकड़ी व बांस की आय में भी तेजी से वृद्धि हुई है। मेंयह आय 1950 में 17.2 करोड़, 1970 में 105 करोड़ रही जो वर्तमान में बढ़कर 4,000 करोड़ रूपये हो गई है।

(vii) आम, सागवान, शीशम, देवदार, बबूल, यूकेलिप्टस आदि लकड़ियों से मकान के दरबाजे, चौखट, कृषि के औजार, जहाज, फर्नीचर आदि बनाये जाते हैं। मुलायम लकड़ियों से कागज और लुग्दी, दियासलाई, प्लाईवुड, तारपीन का तेल आदि वस्तुएँ प्राप्त की जाती है। इमारती लकड़ियों के अतिरिक्त जलाने के काम आने वाली लकड़ियां वनों से ही प्राप्त होती हैं।

(viii) देश से प्रतिवर्ष 50 करोड़ रूपये की लकड़ियाँ एवं लकड़ी की वस्तुएँ, पैकिंग सामग्री आदि का भी निर्यात किया जाता है।

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