Ans. Odum (1971) के अनुसार जीवों के आवासों के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में होने वाले परिवर्तन जो मनुष्य एवं अन्य प्राणियों को प्रभावित करें, प्रदूषण (Pollution)कहलाता है। प्रदूषित आवास जीवों के लिये कम उपयोगी हो जाता है। मनुष्य की सभ्यता के आरंभ से ही प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है।
वायु वायुमंडल में किसी बाहरी पदार्थ या गैस का मिलना जो जीवों के लिये हानिकारक हो प्रदूषण कहलाता है। वायुमंडल में ऑक्सीजन के अलावे किसी अन्य गैस की वृद्धि जीवों के लिए नुकसानदेह होता है।
प्रदूषक (Pollutant) : प्रदूषक ऐसे पदार्थ होते हैं जो मनुष्यों द्वारा प्राकृतिक पदार्थों को उपयोग में लाकर, अवशेषों को प्रकृति में छोड़ दिया जाता है। प्रदूषण के निम्नलिखित स्रोत हैं— (i) एग्जॉस्ट गैसें (Exhaust Gases) : कल-कारखानों, ताप - बिजलीघरों, ऑटोमोबाइल्स इत्यादि से निकलने वाला धुआँ एग्जॉस्ट गैस कहलाता है। इनमें कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड, हाइड्रोजन सल्फाइड इत्यादि के अलावे भारी धातु, पीतल, जस्ता, लेड, कैडमियम इत्यादि पाये जाते हैं। ये गैसें तथा भारी धातु मनुष्य के अलावे, अन्य जंतुओं तथा वनस्पतियों को भी हानि पहुँचाते हैं। केवल मोटरवाहन 60% वायुप्रदूषण करते हैं। (ii) धुआँ तथा धूलकण (Smoke and Grit) : यह 10 - 15% वायु प्रदूषित करता है। ईंधन के Incomplete combustion के फलस्वरूप निकली गैसें जो स्पष्ट रूप से दिखाई देती है धुआँ कहलाता है। ये पौधों में प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करता है।
(iii) रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive Substance) : परमाणु या न्यूक्लियर विस्फोट के कारण बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा विकसित होता है। इन विस्फोटों के फलस्वरूप आस-पास का वातावरण रेडियोधर्मी हो जाता है। रेडियोधर्मी विकिरण का प्रभाव मनुष्यों तथा अन्य जीवों पर अत्यन्त ही खतरनाक होता है। इसका प्रभाव आगे की पीढ़ियों में वंशागत होकर अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न करता है। अधिक रेडियोधर्मी विकिरण के फलस्वरूप तंत्रिका तंत्र में विकार उत्पन्न हो जाता है। लगातार रेडियोधर्मी विकिरण के फलस्वरूप Leukemia तथा Bone cancer उत्पन्न करता है।
(iv) कीटनाशी पदार्थ (Insecticides) : कीटनाशी भी वायु प्रदूषण का एक स्रोत है। ये कीटनाशी दवायें हानिकारक कीटों के साथ-साथ उपयोगी कीटों, मेढ़क, पक्षियों आदि को भी मार देते हैं। फलों और सब्जियों पर छिड़काव के बाद मनुष्य तथा अन्य मवेशी जब इसे खाते हैं तो उनपर इसका विषैला प्रभाव पड़ता है।
(v) शाकनाशी रसायन (Herbicides ) : अनावश्यक खर-पतवार को नष्ट करने के लिये Monuron, Simazin इत्यादि Herbicides का प्रयोग करते हैं। पौधों से ये पदार्थ जंतुओं में प्रवेश करते हैं और चर्मरोग तथा पेट की गड़बड़ी उत्पन्न करते हैं।
वायु प्रदूषण से बचने एवं रोकने के उपाय :-
( 1 ) प्रदूषण के बारे में जनता को जानकारी देकर इसे कम किया जा सकता है।
(2) कल-कारखानों, ताप बिजलीघरों इत्यादि से निकलनेवाले एग्जॉस्ट गैसों को जल स्रोत में कमी लाई जा सकती है।
(3) कल कारखानों की चिमनियों की लंबाई बढ़ाकर भी वायु प्रदूषण कम किया जा सकता है।
(4) कल-कारखानों में प्रदूषण नियंत्रक संयंत्र लगाकर इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
(5) वृक्षारोपण करके भी वायु प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है।सरकार को इस संबंध में कठोर नियामक कानून बनाने चाहिए तथा प्रदूषण नियंत्रण के लिए कार्य करने वाली नियामक एजेंसियों द्वारा ऐसे कानून को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। इन कानूनों को बनाते समय संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञों की सलाह और सहायता अवश्य ली जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, वाहन निर्माताओं, प्रयोगकर्ताओं तथा औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए अलग-अलग कानून बनाए जाने चाहिए।
1. वाहनों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए मानदंड :
(i) सभी वाहनों में प्रदूषण नियंत्रण युक्तियाँ जैसे फिल्टर, उत्प्रेरकी परिवर्तक (Catalytic converter) आदि लगी होनी चाहिए जिससे वाहन द्वारा उत्पन्न प्रदूषण कम से कम हो। (ii) पुराने तथा प्रदूषण उत्पन्न करने वाले वाहनों का प्रयोग निषिध कर दिया जाना चाहिए।(iii) वाहनों का प्रदूषण नियंत्रणाधीन है अथवा नहीं, इस संबंध में नियमित जाँच की जानी चाहिए।(iv) जीवाश्मी ईंधनों के विकल्प के रूप में प्रदूषणरहित ईंधनों की तलाश की जानी चाहिए।(v) सड़कों पर लालबत्ती रहित क्रॉसिंग निर्मित किए जानी चाहिए ताकि इन पर रूककर हरी बत्ती होने की प्रतीक्षा में समय और ईंधन की बरबादी न हो।
(vi) जिन पुलों से होकर वाहनों को ले जाने के लिए शुल्क वसूल किया जाता है उन पुलों पर शुल्क वसूली तंत्र को आधुनिक बनाया जाना चाहिए ताकि जिन वाहनों को एक बार निकलने का संकेत दे दिया जाए वे बार-बार रोके न जाएँ। इससे समय और ईंधन दोनों की बरबादी से बचा जा सकता है और वायु प्रदूषण कम किया जा सकता है।
2. वायु प्रदूषण कम करने के लिए उद्योगों द्वारा पालन किए जाने वाले मानदंड : विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए प्रदूषण संबंधी कठोर नियामक मानदंड लागू किए जाने चाहिए ताकि उनके द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
(i) ऊर्जा दक्ष ईंधन का उपयोग : अच्छी किस्म के ईंधन प्रयोग करने पर कम मात्रा में प्रदूषक पदार्थ उत्पन्न होते हैं।
(ii) ऊँची चिमनियों का प्रयोग : ऊँची चिमनियों को प्रयोग में लाने पर नीचे की हवा कम प्रदूषित होता है। उद्योगों से निकलने वाली प्रदूषक गैसें हवा में काफी ऊँचाई पर मिश्रित होती हैं और दूर-दूर तक फैल जाती हैं।
(iii) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्रों (Electrostatic Pacipitators) का प्रयोग : स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्रों का प्रयोग ताप बिजलीघरों आदि में कोयले के दहकने से निकलने वाले प्रदूषक (फ्लाईऐश) को नियंत्रित करने में काफी प्रभावी सिद्ध हुए हैं। इनके प्रयोग से वायु में प्रदूषक (फ्लाईऐश) की मात्रा में 99% तक की कमी आ सकती है।
(iv) कणिकीय पदार्थों के लिए छन्ने का प्रयोग : कणिकीय पदार्थों से भी वायु प्रदूषित हो जाती है। कणिकीय पदार्थों को वायुमंडल में पहुँचने से रोकने के लिए बड़े आकार के छिद्रयुक्त छन्नों का प्रयोग किया जाता है। ये छन्ने कणिकीय पदार्थों को रोक लेते हैं तथा बड़े आकार के कण उपकेन्द्रीय संग्राहित (Cyclone collector) द्वास अलंग कर दिए जाते हैं।
(v) उद्योगों में मार्जक युक्तियों का प्रयोग : जिन उद्योगों में उपोत्पाद के रूप में गैस उत्पन्न होती है उनमें मार्जक (Scrubbing) युक्तियों को प्रयोग में लाया जाना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया में सल्फर डाइऑक्साइड युक्त बहि:स्राव को जल और चूना पत्थर के घोल से होकर प्रवाहित किया जाता है जिससे चूना पत्थर में युक्त कैल्सियम तथा सल्फर डाइऑक्साइड के बीच रसायनिक संयोजन के फलस्वरूप कैल्सियम सल्फेट निर्मित होता है जिसे अलग एकत्र कर लिया जाता है।
(vi) उद्योगों की अवस्थिति: शहरी क्षेत्रों में उद्योग और कारखानों को लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इन्हें शहरों तथा बस्तियों से दूर स्थापित किया जाना चाहिए।