उत्तर:- रूस में बोल्शोविक क्रांति से पहले जार का शासन था तथा उसके शासनकाल में देश की आर्थिक दशा बहुत खराब थी। शिक्षा स्वास्थ रोजगार व अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव था क्रषि की स्थिति बहुत खराब थी रूस कर्जे के बोझ से दबा हुआ था। जार निरंकुश शासक था उसने जनता की आवश्यकताओं का ख्याल नही किया। इसके आलावा रूस को कीमिया और जापान के साथ युद्ध में हार का सामना करना पड़ा जो रूस के लिए बहुत अपमानजनक था फलस्वरूप जनता जार निकोलश की शासन व्यवस्था से बुरी तरह तंग आ चुकी थी और जनता के 1917 में जार के विरुद्ध क्रांति कर दी हालाँकि क्रांति दो चरणों में हुई पहली मार्च 1917 तथा दूसरी नवम्बर 1917 में और रूस में साम्यवाद की स्थापना हुई। इसे ही बोल्शोबिक क्रांति भी कहते है ।
बोल्शेबिक क्रांति के कारण
i) जारशाही की निरंकुशता :- जार निकोलस एक निरंकुश राजा था वह स्वय को ईश्वर का दूत मानता था और जनता पर उसका कठोर नियंत्रण था हालांकि 1905 के पश्चात् रूस में संसद की स्थापना की गई परंतु शासन के सभी प्रमुख पदों पर राजा का ही नियंत्रण था तथा जार जनता के विकास के लिए कोई विशेष कार्य नही करता था राजा धनी, चर्च व कुलीनवर्ग का विशेष ध्यान रखता था जिससे आम जनता के अंदर राजा के विरुद्ध क्रोध की भावना उत्पन्न हो रही थी।
ii) किसानों की दयनीय दशा :- 19 वी शताब्दी के अंत तक युरोप के सभी प्रमुख देशो में ओघोगिक क्रांति हो चुकी पर रूस अभी तक पिछड़ा हुआ था तथा एक क्रषि प्रधान देश था। यहाँ किसानों पर जार ने भरी कर लगा रखे थे पर उत्पादन कम होने से कृषको की स्थिति अत्यंत दयनीय थी जमीदार भूमिहीन किसानों का शोषण करते थे । अत: किसानों में सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा था 1905 ई॰ में स्थानों पर किसानों के दंगे हुए और क्रांति के समय किसानों ने शांति क्रांतिकारियों का पूरा सहयोग किया।
iii) समाजवाद का विकास :- 19 वी शताब्दी में समाजवादी विचारों का उदय हुआ और रूस में समाजवादी आंदोलन दो भागों में बंट गया क्रांतिकारी समाजवादी दल तथा सामाजिक लोकतान्त्रिक दल बाद में 1903 में समाजवादी लोकतांत्रिक दल दो भागों बंटा बोल्शेबिक तथा मेन्शेविक बोल्शेबिक दल का नेता लेनिन था वह उच्च विचारों का समर्थक था जार निकोलस ने समाजवाद को रोकने के अनेक कदम उठाये परंतु रूस में समाजवादी विचारों का तीव्र गति से प्रसार होता रहा ।
iv) गैर रूसी जातियों का असंतोष :- जार निकोलस ने गैर रूसी जातियों के साथ बड़ी कठोरता का व्यवहार किया था रूस में यहूदियों और अर्मेनियन के उपर भीषण अत्याचार किये गए इसके अलावा बाल्टिक प्रान्तों में भी जबरन रूसिकरण की नीति अपनाई गई। फलस्वरूप वहाँ लोगो के जार के खिलाफ आंदोलन शुरू किये पर इन आंदोलनों को सख्ती के कुचल दिया गया इसका नतीजा हुआ कि गैर रूसी जातियाँ भी जार के विरुद्ध हो गई।
v) भष्ट निरंकुश नौकरशाही :- रूस में शासन के संचालन के लिए नौकरशाही का निर्माण किया गया परंतु जार निकोलश में योग्य व्यक्तियों का चुनाव करने की क्षमता नही थी और नौकरशाही जनता के प्रति कोई सहानुभूति नही रखती थी वह मनमाने ढंग से अत्याचार करती व जनता का शोषण किया जाता इससे रूस की जनता में नाराजगी बढ़ने लगी थी।
क्रांतिकारी नेताओं का उदय :- रूस की क्रांति का श्रेय लेनिन, ट्राटस्की तथा सटालिन आदि नेताओं को जाता है क्योंकि इन नेताओं के तत्कालीन परिस्थियों का लाभ उठाया और जनता के अंदर क्रांति की भावना का प्रचार किया और जनता इनके क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित हुई इन सभी नेताओं में लेनिन ने क्रांति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
vii) युरोप में लोकतंत्र का प्रसार :- युरोप के अधिकतर देशो में लोकतांत्रिक सरकारे बन चुकी थी और रुस की जनता भी पश्चिमी देशो की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली से बहुत प्रभावित थी और जनता रूस में भी लोकतंत्र चाहती थी। इससे भी क्रांति को बढ़ावा मिला।
तात्कालीन कारण :- उपरोक्त कारणों से क्रांति का वातावरण तैयार हो चुका था इसके पश्चात् नि॰ दोनो घटनाओं ने क्रांति का कार्य पूरा कर दिया ।
(क) विश्व युद्ध में रूस की पराजय :- प्रथम विश्व युद्ध में जार के सैनिकों के साथ आम आदमियों को भी युद्ध के मैदान में भेज दिया जिससे भरी संख्या में रूसी सैनिक व नागरिक मर गए और रूस की सैना युद्ध के आरंभिक दिनों में ही हर गई। इससे रूसी सेना और उसमे काम करने वालों के सम्बधी जार के विरुद्ध हो गए। (ख ) सन् 1916 - 17 का अकाल :- 1916 - 17 में रूस में भयंकर अकाल पड़ा| कृषि उत्पादन बहुत कम हुआ खाने - पीने की वस्तुए मिलनी मुश्किल हो गई कीमते आसमान छू.ने लगी ऐसी स्थिति में जार ने जनता के कष्टों पर कोई ध्यान नहीं दिया जिससे जनता जार के विरुद्ध हो गई।
क्रांति का आरंभ :- 5 मार्च 1917 ई को क्रांति की शुरुआत हुई किसानों और मजदूरों के जलसों और सभाओं का आयोजन किया राजा ने क्रांतिकारियों पर गोली चलाने के आदेश पर संसद ने इसे स्वीकार नही किया । अंत में सम्राट को आत्मसम्पर्ण करना पड़ा और जार के गद्दी छोड़ दी|
क्रांति के परिणाम
i) जारशाही का अंतः- क्रांति के पश्चात् रूस में लंबे समय से चले आ रहे जार शासन का अंत हो गया।
ii) साम्यवाद का विकास :- रूस में क्रांति के पश्चात् एक नई साम्यवादी व्यव्स्था का जन्म हुआ जिसका उद्देश्य पूँजीवाद का अंत करके एक शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना था।
iii) रूस की शक्ति में वृद्धि :- क्रांति के पश्चात् रूस ने तेजी से विकास करना आरंभ कर दिया, तथा रूस विश्व के मानचित्र पर एक महाशक्ति के रूप में उभरने लगा।
iv) दुनिया के मजदूरों की प्ररेणा :- इस क्रांन्ति के रूसी किसान तथा मजदूर वर्ग को समाज में उच्च स्थान प्रदान किया उन्हे सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अधिकार प्रदान किये गए। इसके अलावा विश्व में मजदूरों की स्थिति में उनके बदलाव हुए।
v) समाजवाद का प्रचार :- रूस की क्रांन्ति ने विश्व में समाजवाद का प्रसार किया इस क्रांन्ति के पश्चात् मार्क्सवादी विचारों को मान्यता प्राप्त हुई और पुरे विश्व में मार्क्सवाद के अध्यन के प्रति रुचि बढ़ने लगी। निष्कर्ष :- रूसी क्रांति ने विश्व राजनीति में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक बदलाव किये । क्रांति ने जहाँ एक और दल के अधिनायकवाद को बढ़ावा दिया वही दूसरी और आर्थिक समानता को बढ़ावा दिया। क्रांति के बाद रूस की शक्ति में वृद्दि होती चली गई और रूस 1945 के दूसरे विश्व के पश्चात् अमरीका के साथ संयुक्त महाशक्ति बन गया तथा केवल विश्व में अमरीका ही ऐसा देश बचा था जो USA को सैनिक क्षेत्र में चुनौती दे सकता था और ये सब USSR में बोल्शेविक क्रांति के पश्चात् ही संभव हो सका ।