दल पर अपना स्वत्त्व अधिकार रखने वाला अधिकारवादी नेता कहलाता है। वह अपने दल का सर्वेसर्वा होता है। वह एकाधिकार प्रेमी होता है। वह दल को अपना सर्वस्व मानता है। उसके बीच में कोई दूसरा दखल नहीं दे सकता है। वह अपनी समग्र शक्ति को अपने आप में ही केन्द्रित रखता है। वह जैसा चाहता है वैसा ही करता है । वह आम लोगों की भलाई, अपने विचार से करता है। यह पूँजीवादी व्यवस्था में विश्वास रखता है। वह अपने दल के विकास, उत्थान तथा कल्याण का दायित्व अपने माथे पर उठाए रहता है । वह दलगत कार्यक्रम की योजना स्वयं बनाता है। उसका नीति निर्धारण करता है। उसके कार्यान्वयन की व्यवस्था करता है। पैसे जुटाने से लेकर उसके खर्च करने तक का सारा कार्य स्वयं करता है। वह अपने दल के सभी सदस्यों का कदर अवश्य करता है पर भीतर से वह किसी पर विश्वास नहीं करता है। उसे अपने आप पर अधिक भरोसा होता है। अपने संतुलित एवं सुविकसित मस्तिष्क से वह अपने सम्पूर्ण क्षेत्र के सभी बिन्दुओं पर यथेष्ठ ध्यान रखता है। उसकी पैनी दृष्टि से एक भी कोना अछूता नहीं रहता है पर हर हालत में वह प्रभुत्व (Bosim) प्रदर्शन अवश्य करता है।
सत्ताधारी नेत व्यावहार कशल और लोकप्रिय होता है। वह अपने साया लोगों का पूरा ख्याल रखता है। अपने आश्रित सभी लोगों का भला चाहता है। किन्तु हर हालत में वह उनके ऊपर अपना बेरुख अधिकार जताता है। वह अपने अन्दर के सभी अच्छे बुरे, कार्यकर्ताओं पर कड़ी निगरानी रखता है। उसकी मर्जी से लोग भले लाभ उठा ले, बल्कि वह स्वयं कुछ पूँछ डुलाने वाले को लाभ का मौका देता है। पर उनकी नकेल चौबीस घंटे अपने हाथों में रखता है। जरा सा टस से मस नहीं होने देता है। कहीं छोटी सी गलती पायी कि दबोच देता है और जो अपना मन मारकर उसके हाँ में हाँ मिलाता है उसकी पाँचों अंगुलियाँ घी में रहती है। वह उसे अपने नाक का बाल बनाकर रखता है। वह उसकी सारी गल्तियों को माफ कर उसके व्यक्तित्व को बढ़ा-चढ़ाकर अपने लोगों के बीच उछालता है। पर स्वतंत्र विचार के कर्मठ एवं योग्य व्यक्तियों को भी अनेक घाटा उठाकर अलग रखता है। सिर उठानेवाले को मिट्टी में मिला देता है। ऐसा नेता नौकरशाही लालफीताशाही में विशेष पनपता है।
सत्ताधारी नेता विभाजन शासन नीति में विश्वास रखता है। वह दो सदस्यों के बीच दूरी रखता है। सबों से अलग-अलग अकेले में बातें करता है। सबों को अलग ढंग का प्रलोभन देता है। सबों पर अपना विचार थोपता है। दूसरे के अच्छे विचार में भी थोड़ी हेर-फेर कर अपना मुहर लगाता है। हर घाटा उठाकर अपना सिक्का जमाता है। इसका अपना दोहरा व्यक्तित्व होता है। जिसे मानता है उसके लिए देवता और जिसे नहीं चाहता है उसके लिये जान देना और दुश्मन की जान लेना इसके लिए आन है। उसका खडत व्यक्तित्व जटिल होता है। वह सिद्धांत से अतिवादी और व्यवहार में मध्यम मार्गी होता है। वह सामान्य अवसर पर परमार्थी और विशेष अवसर पर स्वार्थी बनता है। इससे दल का लाभ होता है। आम सदस्य इससे खुश रहता है, पर योग्य तथा विशिष्ट सदस्य के लिए बाधक होता है।