बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी यहाँ अर्द्ध-सामंतवाद कृषि क्षेत्र में फैला हुआ है जिसके फलस्वरूप भूमि का अधिकांश भाग कुछ बड़े कृषकों के पास है जो कृषकों एवं खेतिहर मजदूरों का भारी शोषण कर रहे हैं। खेतिहर मजदूरों को भारी परिश्रम के बाद भी न्यूनतम मजदूरी नहीं मिल पाती है। निम्नलिखित तथ्य बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व को स्पष्ट करते हैं
1. बिहार राज्य के आय में योगदान बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। राज्य के कुल आय में कृषि क्षेत्र का योगदान अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से कृषि क्षेत्र के सापेक्षिक महत्त्व में धीरे-धीरे कमी हो रही है। ऐसा भारतीय अर्थव्यवस्था में पाया जा रहा है। भारत के राष्ट्रीय आय में 1950-51 में कृषि का योगदान 56.1 प्रतिशत जो 1989-90 में घटकर लगभग 30.5 प्रतिशत रह गया है। किंतु बिहार राज्य में आज भी कृषि से आय ही स्टेट घरेलू उत्पाद के महत्त्वपूर्ण 'कम्पोनेन्ट' है।
2. रोजगार में योगदान बिहार में कृषि प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में अधिकांश जनसंख्या के जीवन यापन का साधन रही है। बिहार में की गयी दस वर्षीय जनगणनाओं यह पता चलता है कि वर्ष 1901 से अब तक कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता 74.8% से 68% के बीच रही है। -
3. खाद्यान्न आपूर्ति - बिहार में कृषि खाद्यान्न आपूर्ति करती है। भोजन मानव की प्रथम जरूरत है जिसकी पूर्त्ति कृषि क्षेत्र से होती है।
4. औद्योगिक विकास के लिए कच्चा माल को उपलब्ध करना कृषि से बिहार बहुत उद्योग धंधों के लिए कच्चे पदार्थ प्राप्त होते हैं। पटसन उद्योग, चीनी उद्योग आदि सोध बिहार के कृषि पर निर्भर है। इसके अतिरिक्त तेल निकालना, चावल कूटना आदि उद्योग भी कृषि से ही कच्चा माल प्राप्त करते हैं ।
5. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बिहार की कृषि का योगदान अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बिहार की कृषि का अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है। जूट, तंबाकू, चीनी, चमड़ा आदि बिहार के कृषि निर्यात की जाती है।
इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि बिहार की अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है अगर कृषि विकास को तीव्र किया जाए तथा बढ़ती हुई जनसंख्या का कृषि क्षेत्र पर जनभार घटने की दिशा में ठोस कदम उठाये जाए ताकि कृषि मं व्याप्त प्रच्छन्न बेकारी में कमी हो सके।
बिहार की कृषि की कई समस्याएँ हैं जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं
1. कृषि की परिस्थितियों तथा तरीकों में विभिन्नताएँ - विहार के भिन्न-भिन्न भागों में कृषि की परिस्थितियों तथा तरीकों में घोर विभिन्नता पाई जाती है। उत्तरी विहार तथा दक्षिणी बिहार तथा छोटानागपुर में मिट्टी की बनावट तथा फसलों के तरीकों में विभिन्नता पायी जाती है। इससे बिहार में कृषि विकास के लिए कोई योजना समरूप नहीं तैयार की जा सकती है। सिंचाई सुविधा का भी असमान वितरण रहने के कारण बिहार कृषि विकास की कोई भी योजना तैयार करने में कठिनाई होती है।
2. प्रति हेक्टेयर कम उपज बिहार की कृषि की दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या अन्य राज्यों की तुलना में यहाँ प्रति हेक्टेयर निम्न उत्पादन तथा फसलों का उपज कम होना है।
बिहार की प्रति हेक्टेयर उपज तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल तथा केरल से कम है। ग्रामीण क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय के दृष्टिकोण से भी बिहार इन राज्यों में सबसे नीचे स्थान प्राप्त करता है। केरल को छोड़ अन्य सभी राज्यों से कम प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन बिहार में पाया जाता है। खाद्यान्न उत्पादन विकास वार्षिक दर बिहार में तमिलनाडु को छोड़ अन्य राज्यों से कम है।
3. प्रति श्रमिक निम्न उत्पादकता बिहार की कृषि में 49% प्रच्छन्न बेकारी रहने के कारण प्रति श्रमिक उत्पादकता निम्न है इससे कृषि को व्यवसाय के रूप में नहीं लिया जाता है कृषि में पूँजी का विनियोग पर्याप्त नहीं हो पाता है। बिहार के कृषि में प्रति व्यक्ति श्रम उत्पादिता के निम्न होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण कृषि में अधिक व्यक्तियों का लगा होना है। इस स्थिति से अदृश्य बेरोजगारी बिहार के कृषि में उत्पन्न हो गई है।