बिहार के प्राकृतिक संसाधनों का वर्णन करें। Bihar Ke Prakrutik Sansadhan Ka Varnan Karen.
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बिहार के प्राकृतिक संसाधनों का वर्णन करें। Bihar Ke Prakrutik Sansadhan Ka Varnan Karen.

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Ans. बिहार के प्राकृतिक संसाधनों को निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है -

संसाधन : बिहार की मिट्टी को दो भागों में बाँटा गया है।

1. मिट्टी (a) उत्तर बिहार की मिट्टियाँ अवशिष्ट मिट्टी, तराई मिट्टी, नवनिर्मित जलोढ़ मिट्टी, दोमट मिट्टी। (b) दक्षिण बिहार की मिट्टियाँ- कमारी मिट्टी, ताल क्षेत्र की मिट्टी, पुराने जलोढ़ की मिट्टी, अवशिष्ट मिट्टी|

बिहार के लोगों की जीविका का मुख्य साधन मिट्टी संसाधन ही है किन्तु यह संसाधन अनेक समस्याओं से ग्रसित है। पहाड़ी एवं पठारी भागों की मिट्टी अपरदन की समस्या से ग्रसित है। मिट्टी की समस्या अनियोजित उपयोग सम्बंधी भी है। मैदानी भाग में अत्यधिक उपज लेने के लिए अधिकाधिक रासायनिक खादों का उपयोग हो रहा है जिससे मिट्टी की स्वाभाविक उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है और मिट्टी ऊसर होती जा रही है।

मानव की सर्वप्रथम आवश्यकता भोजन है। भोजन की आवश्यकता की पूर्ति कृषि द्वारा होती है। बिहार में मुख्यतः निम्न फसलों की कृषि की जाती है चावल - बिहार में प्रमुख चावल उत्पादक जिले मधुबनी, पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सीतामढ़ी, दरभंगा तथा समस्तीपुर हैं।गेहूँ - बिहार में प्रमुख गेहूँ उत्पादक जिले हैं - मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पश्चिमी चम्पारण, समस्तीपुर, वैशाली, बेगूसराय, खगड़िया तथा सीतामढ़ी।मक्का - बिहार के खगड़िया जिला में सबसे अधिक मक्का उत्पादन होता है। इसके अलावा समस्तीपुर, वैशाली, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, दरभंगा, पश्चिमी तथा पूर्वी चम्पारण मक्का उत्पादक जिले हैं।

दलहन- बिहार में दलहन का सर्वाधिक उत्पादन पश्चिम चम्पारण, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण, मधुबनी, समस्तीपुर तथा सीतामढ़ी में होता है।

बिहार में व्यवसायिक फसलों का भी उत्पादन होता है जिसमें गन्ना प्रमुख है। इस प्रदेश में गन्ना का उत्पादन मुख्य रूप से पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर तथा बेगूसराय जिलों में होता है।

2. प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation) :

प्राकृतिक वनस्पति जलवायु का सही मापदंड है । स्वस्थ्य एवं संतुलित मानव जीवन के लिए वनस्पति का महत्व सर्वाधिक है। इसके द्वारा मनुष्य को लगभग 85% भोज्य पदार्थ प्राप्त होते हैं, साथ ही इसके द्वारा वस्त्र तथा आवास की भी प्राप्ति होती है। जलवायु एवं पर्यावरण को संतुलित बनाने में इसका योगदान सराहनीय है। संतुलित पर्यावरण के लिए प्रदेश विशेष में 33% भूमि पर वनों का विस्तार आवश्यक है परन्तु बिहार में 6.6% भूभाग वनाच्छादित है।

सामान्यतः वनस्पति से अभिप्राय पेड़-पौधों, घास या झाड़ियों के समूह से है। ये भौतिक दशाओं अथवा प्राकृतिक परिस्थितियों के द्वारा स्वतः उगती हैं। यही कारण है कि इसे प्राकृतिक वनस्पति कहा जाता है।

बिहार में उष्ण आर्द्र जलवायु पायी जाती है। यहाँ वर्षा ऋतु छोटी अवधि (मध्य जून से सितम्बर तक) में पायी जाती है। शुष्क काल लम्बा होने के कारण यहाँ पतझड़ के वन पाये जाते. हैं। हैं। शरद काल के अंत में वृक्ष अपनी पत्तियों को परित्याग कर शुष्क वायु से अपनी रक्षा करतेहैं। अतः स्थलाकृति के प्रभाव, तापमान, वर्षा की मात्रा, मिट्टी आदि उल्लेखनीय कारकों के आधार पर इस प्रदेश में दो प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं

1. नम पतझड़ वनस्पति (Moist Deciduous Vegetation) : इस प्रदेश के तराई भागों वन पाये जाते हैं, जहाँ 125 से०मी० से अधिक वर्षा होती है। इनमें साल, सागवान, शीशम, खैर, सेमल आदि उल्लेखनीय वृक्ष पाये जाते हैं तथा निम्न भागों में सवाई घास तथा विभिन्न प्रकार की कटीली झाड़ियाँ पायी जाती हैं। ये वन दून तथा सुमेश्वर की पहाड़ी भागों एवं समीपवर्ती भागों में पाये जाते हैं। पश्चिमी चम्पारण जिला के 117 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर इन वनों का विस्तार है।

. 2. शुष्क पतझड़ वनस्पति (Dry Deciduous Forest) : मिथिला के मैदानी भाग में इस प्रकार के वन उन भागों में पाये जाते हैं, जहां लगभग 120 सेमी० वर्षा होती है। इन भागों में वृक्ष अपेक्षाकृत छोटे कद के होते हैं। साथ ही घास तथा कटीली झाड़ियाँ भी पायी जाती हैं। इनमें साल, सेमल, अमलतास, खैर, महुआ, बाँस के अतिरिक्त सवाई घास - कुश आदि पाये जाते हैं। चूंकि मिथिला का मैदान एक कृषि प्रधान प्रदेश है अतः यहां बाग-बगीचे तथा नवीन वनस्पतियां पाई जाती हैं।

3. खनिज संसाधन - बिहार में खनिजों का विपुल भंडार था किन्तु झारखण्ड राज्य बनने के बाद बिहार खनिज सम्पदा के क्षेत्र में काफी पिछड़ गया है फिर भी बिहार में निम्नलिखित खनिज संसाधन उपलब्ध हैं।

चूना-पत्थर (lime stone) - इस प्रदेश में सबसे बड़ा चूना पत्थर का भण्डार रोहतास जिला में स्थित है। चुना-पत्थर सीमेंट उद्योग का मुख्य कच्चा माल है। रोहतास या कैमूर क्षेत्र में सीमेंट उद्योग रोहतास गढ़, चुनचुन, रामढिहरा, बर्लिया और दुसार खाद हैं।

चीनी मिट्टी - बिहार के भागलपुर, बांका, मुंगेर में चीनी मिट्टी के बड़े भण्डार हैं। चीनी मिट्टी का मुख्य प्रयोग बर्त्तन तथा विद्युत प्रतिरोधी सामान बनाने में किया जाता है। लिड एवं सिल्वर - यह खनिज मुख्यतः बिहार के दुधि, जरना, फोला, गोनार, कजरिया, केरदा तथा बांका में पाये जाते हैं।

ग्रेफाईट- यह मुख्य रूप से बांका, रोहतास और गया जिला में पाया जाता है। इसका प्रयोग रिफ्रेक्टरी उद्योग में होता है।

खनिज तेल एवं गैस - बिहार के मधुबनी, सीतामढ़ी, पश्चिम चम्पारण, पूर्णियां एवं कटिहार में खनिज तेल होने की सम्भावना दिखाई देती है। इस क्षेत्र में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के माध्यम से खोज जारी है।

ऊर्जा संसाधन- इस क्षेत्र में बिहार अभी बहुत पिछड़ा है। कोयला संसाधन तो बिल्कुल उपलब्ध नहीं है। पनबिजली की सम्भावना अधिक है।

4. नदी संसाधन - नदी संसाधन का बिहार में महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि सिंचाई कार्य नदियों द्वारा ही की जाती है। बिहार की नदियों का विवरण इस प्रकार स्पष्ट है।बड़ी और पवित्र नदी है। गंगा जब सर्वप्रथम बिहार प्रदेश की सीमा को छूती है, तब बिहार और उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की 45 मील तक सीमा बनकर चलती है। गंगा बिहार प्रदेश के मध्य भाग से, पश्चिम से पूरब की ओर बहती है। 2. सरयू नदी - इस नदी को घाघरा भी कहते हैं। गंगा के बाद बिहार में इसी का जल पवित्र माना जाता है। सरयू नदी जैसे ही बिहार भूमि को स्पर्श करती है, वैसे ही इसके वाम भाग में छोटी गंडक नामक नदी घुस जाती है।

1. गंगा नदी - गंगा बिहार प्रदेश की सबसे

3. गंडकी- गंडकी नदी बिहार के चम्पारण जिले के पश्चिम उत्तर कोण की भूमि में प्रवेश करती है। इस स्थान को भैंसालोटन कहते हैं, क्योंकि पहले यहाँ जंगली भैंसे बड़ी तादाद में विचरते थे। आजकल इसका नाम बाल्मीकि आश्रम रखा गया है। गंडकी नदी से बिहार के सारण, चम्पारणऔर मुजफ्फरपुर जिले में सींचाई कार्य किया जाता है। गंडकी नदी के बायें तट पर मुजफ्फरपुर जिले के विशुनपद, चकपहाड़ तथा वगैरह निजामत नामक उल्लेखनीय गाँव मिलते हैं। गंडकी नदी वैशाली जिले को स्पर्श करती है। वैशाली जिले के परमानंदपुर, फुलार, मसूदचक आदि गाँव गंडकी नदी के बायें किनारे मिलते हैं। हाजीपुर में गंडकी का 'कोनहारा' नौकाओं के यातायात के लिए प्रसिद्ध है। 4. बूढ़ी गंडकी- इस नदी का उद्गम स्थान बगहा से अग्णिकोण की ओर चार मील दूर पर स्थित विश्वंभरपुर गाँव के एक चौर में है। चम्पारण जिले में इसका नाम सिकरहना है। चम्पारण के लौरिया नंदन गढ़ के पास से ही इसकी चाल में जो वक्रता आती है, वह इसके गंगा-संगम तक बनी ही रह जाती है।वही 

5. बागमती - दरभंगा जिले के रोसड़ा नगर से लगभग दो मील दूर पश्चिमोत्तर कोण में तथा सिंधिया नामक ग्राम के निकट उत्तर भाग में बूढ़ी गंडकी से जो नदी संगम करती है, बागमती नामक नदी है।

6. करेह- करेह दरभंगा जिले की प्रसिद्ध नदी है। इसका अपना कोई मूल स्थान नहीं है । यह दूसरी नदियों के अस्तित्व पर अपना साम्राज्य कायम की हुई है। यह दरभंगा के दक्षिण में ‘स्थित ‘हायाघाट’ से अपने को प्रकट करती है और दरभंगा जिले के पूरब - दक्षिण कोण में बहती हुई मुंगेर जिले की गोगरी थाने की पश्चिम सीमा तक पहुँचती है।

7. कमला- कमला नदी मिथिला की प्रसिद्ध और पवित्र नदी है। इसका उद्गम स्थान नेपाल के ‘महाभारत-पर्वत’ कहलाने वाली श्रृंखला में है और यह भी 'त्रिस्रोतसा' नदी है। दरभंगा जिले की भूमि का निर्माण करने तथा उसे उर्वर बनाने का सबसे अधिक श्रेय कमला को है।

यह नदी नेपाल की राजधानी काठमाण्डु के पूर्वोत्तर सीमा भाग में स्थित 'गोसाईं

8. कोसी- थाना के हिमांचल से आरम्भ होकर पूर्व में कंचनजंघा हिम शिखर तक पहुँचती है। यह सहरसा और पूर्णिया जिले के लिए अत्यंत विपत्तिमूलक तथा विध्वंसकारिणी नदी मानी जाती है।

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