अनौपचारिक पर्यावरण शिक्षा पाठ्यक्रम (Non-formal Environmental Education Curriculum) — अशिक्षित व ऐसे लोग जो गाँवों में रहते हैं और जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से शिक्षा से कोई संबंध नहीं है, उनके लिए उनकी आवश्यकता के अनुसार ज्ञान और जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए।
उदाहरण के लिए, वह ऊर्जा की आवश्यकता के लिए वैकल्पिक स्रोतों (बायो गैस, सौर ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि) के ज्ञान को बहुत पसंद करेंगे। पशु सुरक्षा, भूमि रख-रखाव, फसलों की कीड़ों से रक्षा, स्वच्छ आवास, स्वास्थ्य शिक्षा, रोग और उनसे बचने के उपाय, सिगरेट-तम्बाकू के सेवन से हानियाँ, मद्यपान निषेध आदि अनेक प्रकरण उनके ज्ञान के हो सकते हैं जो पर्यावरण के ही घटक हैं। इस हेतु मीडिया का उपयोग (दूरदर्शन) बहुत उपयोगी हो सकता है। लघुनाटक, कठपुतली |
नाटक, गीत, लोकगीत, गाँवों के मेलों में प्रदर्शनियाँ आदि का आयोजन करना चाहिए।
पाठ्यक्रम को इस प्रकार प्रस्तुत करते हुए निम्नलिखित बिन्दुओं को भी देखा जाना बहुत प्रभावी होगा, क्योंकि केवल पाठ्यक्रम का निर्माण ही काफी नहीं है, उसकी प्राप्तकर्ताओं द्वारा स्वीकारोक्ति भी बहुत आवश्यक है। बी. सी. दास एवं अन्य ने इस संदर्भ में जो बातें सुझाई हैं, वह बेहद ध्यान देने योग्य हैं।
- पाठ्यक्रम स्थानीय स्थितियों के अनुकूल होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम शिक्षार्थी को आकर्षित करने वाला होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकने लायक होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम के संदर्भ में पूरी जानकारी और साहित्य की उपलब्धता भी विश्वसनीय होनी चाहिए।
एक अच्छा सूचना संगृहीत, संतुलित, सबकी रुचि का और पर्यावरण आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकने वाला पाठ्यक्रम निश्चय ही पर्यावरण शिक्षा को एक सफल कार्यक्रम के रूप में संचालित कर सकता है। निःसन्देह पाठ्यक्रम को इस शिक्षण प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्व दिया जाना चाहिए।