सूफी शब्द साधारणतः किसी मुस्लिम संत या दरवेश के लिए प्रयोग किया जाता है। इस शब्द की उत्पत्ति सफा (पवित्र) शब्द से हुई अर्थात् ईश्वर का ऐसा भक्त जो सभी सांसारिक बुराइयों से मुक्त हो।
कुछ लेखकों ने सूफी शब्द को सफा (दर्जा) से जोड़ा है, अर्थात ऐसा व्यक्ति जो आध्यात्मिक रूप से भगवान के साथ पहले दर्जे का संबंध रखता हो।
सूफी मत के मूल सिद्धांत कुरान और हजरत मुहम्मद की हदीश में मिलते हैं। वे हजरत साहिब को अपना अवतार मानते थे और कुरान में पूरा विश्वास रखते थे।
फिर भी कुछ समय पश्चात् उन्होंने दूसरे धर्मों जैसे कि ईसाई मत, फारसी धर्म, बौद्ध मत और भारतीय दर्शनों विचारों और परंपराओं को अपना लिया।
सूफी मत अपने विकास के पश्चात् एक ऐसी नदी के समान बन गया जिसमें आस-पास के क्षेत्रों की छोटी नदियाँ आकर मिल जाती हैं।