रोगों (Diseases) के खिलाफ शरीर को बचाने की शारीरिक क्षमता को प्रतिरक्षा कहते हैं। माँ के दूध शैशव काल में नवजात शिशु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसे रोगों से लड़ने की प्रतिरक्षा करता है।
प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती हैं—
- सहज प्रतिरक्षा
- उपार्जित प्रतिरक्षा
प्रतिरक्षीकरण के तरीके—
- रोगग्रस्त होने पर किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति उस बीमारी के खिलाफ आज प्रतिरक्षा प्राप्त कर लेता है, जैसे— चेचक, खसरा या गलसुआ
- टीकाकरण द्वारा– पोलियो, तपेदिक, यकृतशोथ इत्यादि जैसी बीमारियों के खिलाफ टीके लगवा कर। टीके, क्षीण किए रोगाणु हैं। जब ये शरीर में प्रवेश करते हैं तो रोगों के खिलाफ शारीरिक प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं लेकिन रोग नहीं पैदा करते। कई संक्रामक रोगों को फैलने से रोग के लिए टीकों द्वारा प्रतिरक्षाकरण अत्यधिक कारगर ढंग है। लकवा, चेचक, टिटनेस, काली खाँसी, तपेदिक और विभिन्न प्रकार के यकृतशोथों के खिलाफ टीके उपलब्ध हैं।