डी० एन० ए० डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक अम्ल (Deoxy Ribose-nucleo acid) का संक्षिप्त नाम है। एक यह लम्बी बहुलक है जो अनेक ईकाइयों न्यूक्ओिटाइडस के कड़ी की बनी होती है। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड में निम्नलिखित पदार्थ पाए जाते हैं :
1. कार्बनिक क्षार : कार्बनिक क्षार की मूल रचना में नाइट्रोजन युक्त छः सदस्यों वाली वलय-बेनजीन रहती है जो दो प्रकार की होती है। (क) पाइरिमिडिन (ख) प्यूरिन।
2. पेन्टोज शर्करा : पेन्टोज शर्करा पाँच कार्बन युक्त होता है जिसके चार कार्बन परमाणु एक ऑक्सीजन परमाणु के साथ मिलकर पाँच सदस्य युक्त वलय निर्माण करते हैं। डी॰ एन॰ में जो पेन्टोज शर्करा रहता है उसमें इस शर्करा के दूसरे कार्बन परमाणु से संबंधित हाईड्रोक्शील वर्ग का ऑक्सीजन परमाणु अनुपस्थित रहता है। इस प्रकार के शर्करा को 2, डिऔक्सी डी० रीबोज अथवा 2 डी ओक्सीरोबोज शर्करा कहा जाता है। ए०
डी० एन० ए० में प्रत्येक पाइरिमिडीन तथा प्यूरिन कार्बनिक क्षार 2 - डिऑक्सी रीबोज शर्करा से जुड़ा रहता है। यह रोग डिऔक्सीरी बान्यूक्लिओसाइड कहलाता है।
3. फौस्फेट वर्ग : फौसफेट वर्ग डी० एन० ए० के सदा एक डिऔक्सीराइबोन्यूलिओसाइड से जुड़ा रहता है और इस योग को डिऔक्सीराइबीन्यूक्लिओक्इड कहते हैं। फौसफेट वर्ग नियमतः शर्करा के तीसरे अथवा पाँचवें कार्बन परमाणु से जुड़ा रहता है। डी एन ए सामान्यतया बहुडिऑक्सिराइबीन्यू- क्लिओटाइड के रूप में रहता है। क्योंकि यह यौगिक अनेक डिऑक्लिओटाइड के नियमित रूप से कड़ी में जुड़ने के फलस्वरूप बनता है। दो डिओक्सीन्यूविया औटाइडस जुड़ना तभी सम्भव है जब निचले यौगिक के शर्करा के पाँचवें कार्बन परमाणु से लगा ऑक्सगंज परमाणु ऊपरी यौगिक कं शर्करा के तीसरे कार्बन परमाणु से लगे OH वर्ग विस्थापित कर दे यह बहुडिऔक्सोराइबोन्युकिक्लओटाइड एक रैखिक श्रृंखला वाली अशाखित-अणु है जिसमें रोड़ शर्करा- फौस्फेट बन्धनों की बनी होती है एवं जिसकी रैखिकता किसी विशेष क्षार के किस स्थान से स्वतंत्र रहती है।
1948 तक डी० एनः एः एक लम्बी अशाखित श्रृंखला मानी जाती थी. जिसमें चार और ऐडनिन ग्वानिन, साइटोसिन तथा थाएमिन नियमित रूप से दुहराए गए थे। 1950 में दूरबीन चारगाफ ने भिन्न-भिन्न उद्गमों से प्राप्त डीः एनः ए में उपस्थित क्षारों की मात्रा का अध्ययन किया। उनके मतानुसार डी. एनः ए० चाहे किसी भी तरह की कोशिकाओं में प्राप्त किया गया हो, उसमें एडनिन तथा साइटोसिन क्षार की मोलर मात्रा सदैव बराबर होती है। इस सम्बन्ध के कारण ऊत्तकों में प्यूरिन की सांध्रता भी सदैव पाईरिडीज की सांध्रता के बराबर होती है। परन विभिन्न जीवों से प्राप्त डी० एन० ए० में प्यूरिन तथा पाइरिसिडिन की निरपेक्ष मात्रा में भिन्नता होती है, जो किसी भी स्पेसीज के जीवों के अभिलाक्षणिक होती है। जब एक ही स्पेसीज के जीव के विभिन्न अंगों से डी० एन० ए० लेकर निरीक्षण किया गया हो तो इनकी संरचना एक समान पाई गई। विभिन्न जीवों से प्राप्त डी० एन० ए० का एक्सकिरण विवर्त्तन प्रतिरूप भी विल्किस फ्रैकलिन तथा अस्ट्रवरी द्वारा एक समान पाया गया। यह भी पाया गया कि डीः एनः के परमाणु भी एक नियमित रूप में व्यवस्थित रहते हैं। जेम्स डी० वाटसन तथा फ्रांसिस क्रिक नामक कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 1953 में जीव रसायन तथा भौतिक रसायन के आधार पर एक्सकिरण विवर्त्तन द्वारा डी० एन० ए० का एक आण्विक प्रतिरूप प्रस्तुत किया जो त्रिविम था।