आपका प्रिय कवि पर लेख लिखें। Aapka Priya Kabhi Per likh Likhen.
96 views
0 Votes
0 Votes

आपका प्रिय कवि पर लेख लिखें। Aapka Priya Kabhi Per likh Likhen.

1 Answer

0 Votes
0 Votes

दिनकर जी का जन्म 1908 में सिमरिया गाँव में हुआ था। बचपन में ही पितृस्नेह से वंचित हो जाने वाले दिनकर का पालन पोषण 'मूर्तिमती करुणा' जननी के हाथों हुआ। अभावों और संघर्षों से जूझते हुए दिनकरजी ने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास लेकर बी० ए० ऑनर्स किया। शिक्षक, सब रजिस्टार, सरकार के युद्ध प्रचार अधिकारी आदि से लेकर लंगट सिंह कॉलेज में अध्यापक, भागलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति एवं राज्यसभा के सदस्य आदि अनेक पदों को दिनकर जी ने गौरवान्वित किया। इन्होंने मुख्यतः कविताएँ लिखी हैं। गद्य में ये केवल निबन्धकार और आलोचक हैं। रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रश्मिरथी, संस्कृति के चार अध्याय, अर्द्धनारीश्वर, हारे को हरिनाम, उजली आग इत्यादि इनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। इनके देहावसान के साथ वस्तुतः हिन्दी साहित्य गगन का देदीप्यमान सूर्य अस्त हो गया।

अनल किरीट कविता कामिनी का अभिषेक करने वाले राष्ट्र कवि दिनकर हिन्दी के ओजस्वी कवि हैं। उनकी कविता उस नदी की तरह प्रवाहित है जिसके एक किनारे पर क्रांति का जयघोष हो रहा है, चिता जलाई जा रही है, बलिदानियों का गौरव गान हो रहा है और नगपति हिमालय का आह्वान हो रहा है तथा दूसरी ओर कोमलता, फूल, चाँदनी प्रेयसी और अनुराग की दुनिया बसाई जा रही है।

दिनकर मूलत: रोमांटिक कवि हैं। उनके काव्य की मूल चेतना द्वन्द्व है। जीवन का अस्तित्व सत्-असत्, शुभ-अशुभ, नश्वर - अनश्वर आदि में बँटा हुआ है। दोनों में से किसी एक का ही चयन किया जा सकता है। दिनकर को दोनों चीजें बारी-बारी से लुभाती हैं और वे दोनों ओर ललक के साथ बढ़ते हैं। इस काव्य प्रवृत्ति की दृष्टि से दिनकर की रचनाओं का एक वर्ग वह है जिसमें रसवन्ती, उर्वशी आदि की गणना होती है। इसमें प्रेम के प्रति स्वच्छन्दतामूलक दृष्टिकोण साथ उसके विविध पक्षों का कथन हुआ है।

दूसरे वर्ग में सामधेनी, हुँकार आदि रचनाएँ आती हैं जिनमें विपथगा क्रांति का आवाहन है, बलिदान की आकांक्षा है। दिनकर जी की ओजस्विता इन रचनाओं में उन्मुक्त रूप से प्रकट हुई है। उनकी रचनाओं का तीसरा वर्ग भी है जिसमें उनका हृदय मस्तिष्क के स्तर पर चढ़कर बोलता है। ये रचनाएँ चिन्तन प्रधान तो हैं लेकिन भावुक भी कम नहीं हैं। इनमें जीवन की विविध समस्याएँ व्यक्त हैं। कुरुक्षेत्र में युद्ध की समस्या पर कवि लगातार सोचता रहा है तो रश्मिरथी में जातिवाद कुलीनता के विरुद्ध मनुजता के नये नेता के रूप में कर्ण की प्रतिष्ठा की गई है। द्वन्द्वगीत, कोयला और कवित्व, आत्मा की आँखें आदि में भी उनके विविध विचार व्यक्त हुए हैं। इन रचनाओं में कवित्व की भावुकता कम, विचारों की उत्तेजना अधिक है।

दिनकर का कवि सहजता का पुजारी है। यदि जन-जीवन में जनता की जुबान पर चढ़ जाना कविता या कवि की सफलता है तो आधुनिकयुगीन कवियों में केवल दिनकर ही सौभाग्यशाली हैं जिनकी कविताएँ जन-प्रिय हैं। इसका कारण यह है कि वे अपनी बात सपाट भाषा में बिना किसी लाग लपेट के कहने की क्षमता रखते हैं। दिनकर की कला अर्धनारीश्वर कला है। उनमें ओजस्विता के शिव और कोमलता की पार्वती का अपूर्व संगम है। उनके एक हाथ में डमरु है तो दूसरे हाथ में वीणा । मैथिलीशरण गुप्त की सादगी, निराला की ओजस्विता, पंत की कलात्मकता और प्रसाद की गंभीरता के तत्त्वों से दिनकर का काव्य सुपुष्ट हुआ है। चिन्तन के धरातल पर दिनकर में भले ही खामियाँ हों लेकिन कवित्व के धरातल पर दिनकर सचमुच दिनकर हैं। इसी कारण, वे मेरे प्रिय कवि हैं।

RELATED DOUBTS

1 Answer
1 Vote
1 Vote
145 Views
1 Answer
1 Vote
1 Vote
108 Views
Peddia is an Online Question and Answer Website, That Helps You To Prepare India's All States Boards & Competitive Exams Like IIT-JEE, NEET, AIIMS, AIPMT, SSC, BANKING, BSEB, UP Board, RBSE, HPBOSE, MPBSE, CBSE & Other General Exams.
If You Have Any Query/Suggestion Regarding This Website or Post, Please Contact Us On : [email protected]

CATEGORIES