बच्चों को सही तरीके से पढ़ना सिखाने या 'पढ़ने' की क्षमता विकसित करने के लिए जरूरी है कि बच्चों को 'डीकोडिंग' से दूर रखा जाए। 'डीकोडिंग' से मतलब है शब्द को टुकड़ों में बाँटकर पहचानना फिर उसे बोल पाना या पढ़ पाना। विद्यालयी शिक्षा में भाषा के सन्दर्भ में 'डीकोडिंग' और उस पर आधारित विधियाँ; जैसे-वर्णमाला, उच्चारण या शब्द बोलना जैसी विधियाँ बहुत लोकप्रिय हैं।
लोकप्रिय होने के दो मुख्य कारण हो सकते हैं, पहला तो यही कि शायद शिक्षक 'पढ़ने' के सही मतलब को नहीं समझ पाए हैं। दूसरा कारण पढ़ाना उन्हें अधिक सुविधाजनक लगता हो । पारम्परिक विधियों से पढ़ना सीखने वाले बच्चे हर शब्द को अक्षरों की छोटी इकाइयों में तोड़ते हैं और इस तरह से शब्दों का अर्थ ग्रहण करने की मस्तिष्क की क्षमता पर बहुत ज्यादा बोझ डाल देते हैं।
सही तरीके से पढ़ने वाले बच्चों की आँखें ऐसा बोझ नहीं डालने देती क्योंकि वे पन्ने पर अंकित ग्राफिक सूचनाओं के एक सीमित चुने हुए अंश से जूझती हैं। वे किसी अक्षर के पूरे आकार पर ध्यान नहीं देते और न ही वे एक शब्द के सारे अक्षरों या एक वाक्य के सारे शब्दों पर ध्यान देते हैं पढ़ते समय उनकी आँखें लिखी हुई सामग्री के छोटे-से अंश पर गौर करती हैं, शेष भाग अनुमान के जरिए ग्रहण किया जाता है।