Ans. मधुमेह के निम्न कारण हैं
(1) वंशानुगत (Heredity) मधुमेह रोग वंशानुगत रोग होता है। यदि माता-पिता दोनों ही अथवा इनमें से कोई भी इस मधुमेह रोग से पीड़ित होते हैं तो उनके बालकों में भी इस रोग की होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है। यदि बालकों में प्रत्यक्ष रूप से मधुमेह नहीं भी होता है तो भी वे इस रोग के वाहक (Diabetes Carrier) हो जाते हैं। अतः यह रोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशानुगत रूप से हस्तान्तरित होता रहता है। यदि किसी व्यक्ति को 40 वर्ष से पहले ही मधुमेह हो जाता है तो ऐसा वंशानुगत के कारण होता है।
(2) आयु (Age) मधुमेह कभी भी किसी भी उम्र के व्यक्ति में हो सकता है। शैशवावस्था में भी मधुमेह होता है, परन्तु तब यह रोग अस्थायी होता है जो कुछ दिनों के वाद स्वतः ही ठीक हो जाता है। 40-50 वर्ष में मधुमेह हाने की सम्भावनाएँ काफी हद तक बढ़ जाती हैं।
(3) मोटापा (Obesity)- मोटे व्यक्तियों को मधुमेह अधिक होता है। प्रौढ़ावस्था में, विशेषकर 35-40 वर्ष की अवस्था में, शरीर में वसा संग्रह ( Adipose Tissue) की प्रकृति बहुतअधिक बढ़ जाती है। मोटे व्यक्तियों की शारीरिक क्रियाशीलता भी कम होती है। इस कारण कार्बोज का चयापचय ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है, क्योंकि जिस अनुपात में कार्बोजयुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन किया जाता है उस अनुपात में इन्सुलिन का स्रावण नहीं हो पाता है परिणामस्वरूप मधुमेह रोग हो जाता है।
( 4 ) लिंग ( ***) – यद्यपि यह रोग स्त्रियों तथा पुरुषों दोनों को ही होता है, में स्त्रियों की अपेक्षा इस रोग के होने की प्रबल सम्भावना रहती है। परन्तु पुरूषों
( 5 ) मानसिक तनाव ( Mental Stress) - मानसिक तनाव, क्रोध, उद्वेग, चिन्ता, भय आदि कारणों से व्यक्ति समय पर भोजन नहीं ग्रहण करता है, जिससे अनियमितता उत्पन्न हो जाती है। अतः कार्बोज चयापचय प्रभावित होता है तथा मधुमेह हो जाता है।
( 6 ) इन्सुलिन के स्राव में अनियमितता से शरीर में पचे कार्बोज के सरलतम रूप में ग्लूकोज का पूर्ण प्रयोग नहीं हो पाता है और रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। मधुमेह में ग्लूकोज की मात्रा बढ़कर 600 मिग्रा० तक हो जाती है।
(7) हॉमोनयुक्त दवाइयों के प्रयोग से ।
(8) कुलोम ग्रन्थि, एड्रीनल, पिट्यूटरी ग्रन्थि, थायराइड ग्रन्थि में दोष आने से भी मधुमेह हो जाता है क्योंकि इन ग्रन्थियों से निकलने वाली हार्मोन कार्बोज के चयापचय में सहायक होते हैं। उपचार ( बचाव)मधुमेह के रोग का कोई स्थायी उपचार नहीं है, परन्तु इसे कुछ हद तक नियंत्रित रखा जा सकता है। मोटापा के कारण यदि व्यक्ति को मधुमेह है तो वजन पर नियंत्रण करना अत्यन्त आवश्यक है। आहार में परिवर्तन एवं आवश्यक सुधार करके मधुमेह पर अंकुश लगाया जा सकता है, परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि रोगी स्वयं स्वस्थ होने के लिए भरपूर प्रयास करे तथा परवर्तित आहार को ग्रहण करे साथ-ही-साथ चिकित्सक की सलाह माने। मधुमेह रोग पर नियंत्रण दवाइयों से अधिक रोगी की दृढ़ इच्छाशक्ति, मनोबल उत्साह एवं सहयोग पर निर्भर करता है।
मधुमेह का उपचार निम्नानुसार किया जा सकता है- (1) आहार (Diet), (2) इन्सुलिन के इंजेक्शन देकर, (3) खाने की दवाइयों से, तथा (4) व्यायाम।
( 1 ) केवल आहार नियन्त्रित कर मधुमेह के वे रोगी जिनका वजन सामान्य होता है, उनकी उम्र तथा लम्बाई के अनुसार अधिक व कम नहीं होता तथा मूत्र परीक्षण में कीटोन उपस्थित नहीं होते हैं। इनका भोजन नियंत्रित कर रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
( 2 ) रक्त में शर्करा का अनुपात कम करने हेतु आहार के साथ-साथ दवा का प्रयोग । (3) यदि दवा आहार नियंत्रण से भी शर्करा नियंत्रित न हो तो इन्सुलिन का प्रयोग।
मधुमेह का रोगी यदि मोटा है तो ध्यान रहे उसके भोजन में मोटापा बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ नहीं रखने चाहिए। कार्बोज की मात्रा कम करने के लिए भोजन में मीठे भोज्य पदार्थ न हों जैसेशहद, गुड़, शक्कर, मिठाई, मीठे पेय पदार्थ, आइसक्रीम, कन्द वाली सब्जियाँ, खजूर भोजन में, न दें या बहुत कम मात्रा में दें। भोजन मोटापा बढ़ाने वाला हो पर आवश्यक कैलोरी की पूर्ति करता हो इसके लिए प्रोटीन अधिक मात्रा में दिया जाना चाहिए। समय-समय पर मूत्र रक्त परीक्षण करवाकर ग्लूकोज की मात्रा की जाँच करवाते रहना चाहिए।
मधुमेह के रोगी के आहार की व्यवस्था करते समय निम्न बातें ध्यान में रखेंI.
पौष्टिक तत्व ऊर्जा-रोगी की आवश्यक ऊर्जा माँग में परिवर्तन नहीं आता है उसे आवश्यक कैलोरी भोजन द्वारा देना चाहिए। कैलोरी माँग रोगी उम्र, व्यवसाय, लिंग क्रियाशीलता से प्रभावित होगी। मधुमेह के रोगी को कैलोरी की आवश्यकता उसके शरीर के भार के अनुसार आवश्यक होती है।अधिक क्रियाशीलता वाला रोगी- 40 कैलोरी प्रति किलो वजन मध्यम क्रियाशीलता वाला रोगी- 35 कैलोरी प्रति किलो वजन कम क्रियाशीलता वाला रोगी- 30 कैलोरी प्रति किलो वजन वह जो बिस्तर पर है उठ नहीं सकता- 25 कैलोरी प्रति किलो वजन कैलोरी प्राप्ति 15% प्रोटीन से 40% कार्बोज से 45% वसा से प्रोटीन- प्रोटीन भी शरीर के वजन के अनुसार देनी चाहिए। अधिक प्रोटीन देना क्योंकि प्रोटीन भी रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ाती है। 1-15 ग्राम प्रति किलो के अनुसार प्रोटीन लेनी चाहिए।भी ठीक नहीं शरीर के वजन(200) रोज लेना कार्बोज पदार्थ- कुल आवश्यक कैलोरी का 1/10 वाँ भाग कार्बोज पदार्थ लेना चाहिए। यदि आवश्यक कैलोरी 2000 है तो कार्बोज 200 ग्राम (2000 × 1/10 )= चाहिए। मूत्र में कीटोन की मात्रा रोकने तथा रक्त में ग्लूकोस की सामान्य स्थिति बनाये रखने के लिए कम-से-कम 200 अधिक से अधिक 250 ग्राम कार्बोज की आवश्यकता होती है। विशेष परिस्थितियों में डॉक्टरी परामर्श के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है। -
वसा - मधुमेह के रोगी को असंतृप्त वसीय अम्ल वाली वसा देने चाहिए। प्रतिदिन 50-150 ग्राम तक वसा देनी चाहिए।
II. भोज्य पदार्थ अनाज- चावल और मक्के का प्रयोग कम या न करें, गेहूँ तथा चना, गेहूँ-जौ-चना, मिलाकर उसका आटा प्रयोग में लायें।
दाल- अरहर, मसूर, उड़द, प्राणिज भोज्य पदार्थ - अण्डा, मांस, मछली, दूध व दूध के बने भोज्य पदार्थ मिठाइयाँ, खोया छोड़कर।
सोयाबीन, मूँग, मोठ का प्रयोग करें।
सब्जियाँ - अरबी, आलू, शकरकन्दी का प्रयोग न करें। समस्त हरी पत्तेदार सब्जियों तथा अन्य सब्जियों में जिनमें कार्बोज की मात्रा 3-10% तक हो।
फल- वे फल जिनमें कार्बोज की मात्रा 3-15% तक हो। आँवला, नीबू, सन्तरा, खरबूजा, नाशपाती, पपीता, जामुन, अमरूद का प्रयोग करें।
पेय पदार्थ - बिना शक्कर या सैक्रीन वाली चाय, कॉफी, कोको|मीठे पेय पदार्थ न प्रयोग करें। वे भोज्य पदार्थ जो नहीं देने चाहिए
1. चावल।
2. आलू, शकरकन्दी, जिमीकन्द, अरबी, चुकन्दर, कमलगट्टा|
3. चीनी, गुड़, शहद, मिठाइयाँ, आइस्क्रीम अर्थात् सभी मीठे भोजन जिनमें शक्कर है।
4. पेस्ट्री केक।
5. छुआरा, किशमिश, अधिक मीठे ताजे फल, जैम, केला, अंगूर