(i) द्रवरागी सॉल ( विलायक को आकर्षित करने वाले ) - द्रवरागी शब्द का अर्थ है द्रव को स्नेह करने वाला। गोंद, जिलेटिन, स्टार्च रबर आदि जैसे पदार्थ को उचित द्रव में मिलाने पर सीधे ही प्राप्त होने वाले कोलॉइडी सॉल द्रवरागी कोलॉइड कहलाते हैं।
इस प्रकार के सॉल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यदि परिक्षेपण माध्यम को परिक्षिप्त प्रावस्था से अलग कर दिया जाए तो सॉल को केवल परिक्षेवण माध्यम के साथ मिश्रित करके पुनः प्राप्त किया जा सकता है।
ऐसे सॉल उत्क्रमणीय सॉल भी कहते हैं । ये सॉल पर्याप्त स्थायी होते हैं एवं इन्हें आसानी से स्कन्दित नहीं किया जा सकता ।
(ii) द्रवविरागी कोलॉइड ( विलायक को प्रतिकर्षित करने वाले ) - द्रवविरागी शब्द का अर्थ है द्रव से घृणा करने वाला। धातुएँ एवं उनके सल्फाइड आदि जैसे पदार्थ केवल परिक्षेपण माध्यम मिश्रित करने से कोलॉइडी सॉल नहीं बनाते। इनके सॉल केवल विशेष विधियों द्वारा ही बनाये जा सकते हैं।
ऐसे सॉल द्रव विरागी सॉल कहलाते हैं। ऐसे सॉल को वैद्युत् अपघट्य की थोड़ी-सी मात्रा मिलाकर, गर्म करके या हिलाकर आसानी से अवक्षेपित किया जा सकता है। इसलिए ये स्थायी नहीं होते। इसके अतिरिक्त एक वार अवक्षेपित होने के बाद ये केवल परिक्षेपण माध्यम के मिलाने मात्र से पुनः कोलॉइडी सॉल नहीं देते। अतः इनको अनुत्क्रमणीय सॉल भी कहते हैं।
द्रवविरागी मॉल के परिरक्षण के लिए स्थायी कारकों की आवश्यकता होती है।