ओम प्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा जूठन से गृहीत इन पंक्तियों में चूहड़ों द्वारा मरे पशुओं को उठाने का प्रसंग है। लेखक बताता है कि मरे पशु को उठाने के लिए कई लोगों की जरूरत होती थी। प्रायः लोग जल्दी एकत्र नहीं हो पाते थे। तबतक देर होने पर पशु वाले चिल्लाने और गालियां बकने लगते थे।
इसी की प्रतिक्रिया में लेखक की टिप्पणी है कि हम बड़े ही क्रूर समाज में रह रहे थे। लोग न हमारे काम की अहमियत मानते थे और न श्रम की कीमत देते थे। उलटे गालियां बकते थे। यह श्रम की कीमत न देना हमारी गरीबी को बनाये रखने का षडयंत्र था ताकि हम दलित बनकर उनकी सेवा करते रहें। निचले स्तर के काम जो वे स्वयं नहीं कर सकते थे उसके लिए भी बेगार कराते थे। यह दलितों को दबाये रखने का उनका षड्यंत्र था।