प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में विद्वान लेखक ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की है।
कहानी में तिरिछ आतंक का पर्याय बनकर आया है। उसी के कारण लेखक के डरावने सपने आते हैं। यह आतंक शहरी आधुनिकता एवं जीवन दृष्टि का है और सत्ता की निरंकुशता का। एक तरफ आतंक और यंत्रणा से उपजी बेचैनी है, तनाव और असहायता का भाव निहित है, तो दूसरी ओर शहरी या कहें आधुनिक मनुष्य की संवेदनहीनता और अमानवीयता छिपी हुई है। यहीं मूल्यों का संक्रमण सर्वाधिक दृष्टिगोचर होता है। परंपरा और आधुनिकता अथवा पुराने और नए द्वंद्व से जहाँ नवीन भावबोध का सृजन हुआ वहीं कुछ विकृतियों ने भी जन्म लिया। संवेदना का क्षरण हुआ। इस क्षरण ने अजनबीपन, अकेलापन, घुटन और संत्रास जैसे भावबोध दिए। दूसरे भावबोध के कारण लेखक हमेशा डरा हुआ महसूस करता। उसे डरावने सपने आते। जब सपने में मृत्यु के करीब होता तो वह जोर-जोर से बोलने लगता और दूसरी आवाज के सहारे सपने से बाहर निकलता। इस पूरी दुनिया में उसकी आवाज ही अपनी थी जो उसे मृत्यु के मुँह में जाने से बचा लेती है।