18वीं शताब्दी में घराने एक प्रकार से औपचारिक संगीत शिक्षा केंद्र थे, परंतु ब्रिटिश शासनकाल का आविर्भाव होने पर घरानों की रूपरेखा कुछ शिथिल होने लगी।
क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति के लोग कला की अपेक्षा वैज्ञानिक प्रगति को अधिक मान्यता देते थे और अध्यात्म की अपेक्षा इस संस्कृति में भौतिकवाद प्रबल था।
भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के अंतर्गत कला को पवित्रता एवं आस्था का स्थान प्राप्त था।
मुस्लिम शासकों ने भी इसे प्रश्रय दिया और संगीत को मनोरंजन का उपकरण मानते हुए भी इसके साधना पक्ष को बिना विस्मृत किये संगीतज्ञों तथा शास्त्रकारों को राज्य अथवा रियासतों की ओर से सहायता देकर संगीत के विकासात्मक पक्ष पर ध्यान दिया।
ब्रिटिश शासकों ने संगीत कला के प्रति भौतिकतावादी दृष्टिकोण अपनाकर उसे यद्यपि व्यक्तित्व के विकास का अंग माना, परंतु यह दृष्टिकोण आध्यात्मिकता के धरातल पर स्थित न था।
उन्होंने संगीत को अन्य विषयों के समान ही एक विषय के रूप में स्वीकार किया।
भारत पर पश्चिमी प्रभाव बढ़ने के फलस्वरूप संगीत में अन्य विधाएँ भी जुड़ने लगीं। इस प्रकार जैज़, पॉप, रॉक आदि का प्रचलन भारत में भी बढ़ा है।