ऊर्जा के संसाधनों में पेट्रोलियम (petra शैल, oleum = तेल) अर्थात् खनित तेल का महत्त्व बहुत अधिक व्यापक है। कोयले की अपेक्षा पेट्रोलियम हल्का होता है, तथा इसमें ताप देने की शक्ति कोयले से कई गुणा अधिक होती है। इसलिये मोटर गाड़ियों, रेल की इंजिनों, जलपोतों और वायुयानों में पेट्रोल ही चालक शक्ति होता है। कृषि के ट्रेक्टरों, हारवेस्टरों, कम्बाइन मशीनों, सिंचाई की गाड़ियों, ट्रकों, आदि में पेट्रोल का प्रयोग होता है। निर्माण उद्योग में भी कोयले के अलावा पेट्रोल के ईंधन का अधिकाधिक प्रयोग होता चला जा रहा है। शान्तिकालीन उपयोगों के अलावा युद्धकाल में तो पेट्रोल का महत्त्व अत्यधिक हो जाता है। द्वितीय महायुद्ध में जर्मनी की पराजय का कारण पेट्रोल का अभाव ही था।
पेट्रोलियम के मुख्य उपयोग निम्नलिखित हैं
(क) घरेलू ईंधन के रूप में रसोईघरों में, प्रकाश देने के लिये और ठण्डे देशों में मकानों को गर्म रखने के लिये।
(ख) औद्योगिक ऊर्जा के रूप में कारखानों के इंजिनों को चलाने के लिए, भट्टियों को ताप देने के लिए तथा ताप विद्युत उत्पादन के लिए।
(ग) परिवहन शक्ति के रूप में रेलगाड़ियों, मोटरगाड़ियों, जलयानों, वायुयानों को चलाने के लिये।
(घ) मशीनों को विशेषतः तेज गति से चलने वाले पुर्जों को चिकना बनाये रखने के लिये स्नेहक (lubricant) के रूप में।
(ङ) रासायनिक उद्योगों कच्चे माल की तरह प्रयोग करने के लिये । इससे (i) कृत्रिम रबर बनाई जाती है, जिससे ट्यूब टायर, बैल्ट, आदि निर्मित होते हैं, (ii) अनेक प्रकार के कृत्रिम रेशे बनाये जाते हैं, जिनसे टेरीलीन वस्त्र आदि निर्मित होते हैं, (iii) कृषि के उर्वरक बनाये जाते हैं, (iv) विभिन्न प्रकार के दूसरे तेल, तथा (v) औषधियाँ बनाई जाती हैं।
पेट्रोलियम से अब 5,000 से भी अधिक वस्तुओं का उत्पादन हो रहा है।
वैज्ञानिकों का सामान्य मत है कि अतीत काल में सागरीय जीवों और प्लेंकटन जैसी अति लघु वनस्पति के भूमि के दबने के बाद, वह जैव पदार्थ जीवाण्विक क्रिया (bacteriological) द्वारा अपघटित हो गया था, उसके पश्चात् रासायनिक परिवर्तन द्वारा वह पदार्थ तेल के लघु कणों का रूप धारण कर गया। ऊपरी शैलों के भार से दबकर वे तेल कण शैल परतों में एकत्रित होते रहे। भूपटल की केवल अवसादी शैलों में ही खनिज तेल मिलता है | तलछटी मैदानों में, समुद्रतटों में और उथले समुद्रों के अन्दर भी तेल मिलता है। तेलकूप खोदकर तेल को बाहर निकाला जाता है।
तेल कूपों से निकाले हुए खनिज तेल को प्रयोग करने से पहले आसवन (distillation) द्वारा शोधा (refine) जाता है, जिससे हल्के तेल, मध्यभार तेल और भारी तेल अलग-अलग हो जाते हैं। हल्का तेल गैसोलीन होता है, जो वायुयानों, मोटरकारों आदि में प्रयुक्त होता है, उससे भारो केरोसीन होता है, जो जलाने तथा घरेलू ईंधन में काम आता है। मध्यभार में डीजल तेल होते हैं, जो मोटर- बस, ट्रैक्टर, पम्प, रेल इंजिन, जलपोत आदि के चलाने में तथा औद्योगिक ईंधन को तरह कारखानों में प्रयुक्त होता है। डीजल से भारी स्नेहक तेल (lubricating oil) तथा क्रमशः भारी अन्य ईंधन तेल और ग्रीज होती है। स्नेहक तेल यंत्रों, मशीनें और अन्य चलने वाले पुजा का आपस में रगड़कर विनिष्ट होने से बचाता है।
संसार में खनिज तेल के ज्ञात भण्डार सबसे अधिक फारस-खाड़ी के समीपवर्ती पश्चिमी एशिया के अरब राज्यों में हैं, जिनको 'मध्य पूर्व' कहते हैं। इनमें विश्व के पेट्रोलियम भण्डार का लगभग 60% भाग है। इनके समीप पूर्व सोवियत संघ के पेट्रोलियम भण्डार हैं। कैस्पियन सागर, काला सागर, लाल सागर और फारस की खाड़ी से घिरा हुआ भूखण्ड संसार का सर्वप्रमुख पेट्रोलियम भण्डार है। अन्य बड़े भण्डार संयुक्त राज्य अमेरिका, केरीबियन सागरीय प्रदेश तथा उत्तरी अफ्रीका के अल्जीरिया और लीबिया राज्य हैं। इण्डोनेशिया, चीन, भारत, जापान, म्याँमार तथा आस्ट्रेलिया में भी खनिज तेल के छोटे-छोटे भण्डार हैं।
भारत में पेट्रोलियम तेल क्षेत्रों का विवरण निम्न प्रकार हैं -
(i) असम में लखीमपुर क्षेत्रों में- (क). डिगबोई में माकूम के तेल भण्डार (ख) नाहर कटिया (ग) मोरन (घ) बप्पा पुंग (ङ) हसन पुँग। (ii) असम की सुरमा घाटी में- (क) बदरपुर, (ख) मसीमपुर (ग) पथरिया क्षेत्र (iii) गुजरात में (iv) खम्भात खाड़ी में लुनेज, अंकलेश्वर और कलोल क्षेत्र । (v) बॉम्बे हाई का तेल क्षेत्र ।
भू-वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार भारत में तेल के नये क्षेत्र मिल रहे हैं, विशेषकर कच्छ के तटीय क्षेत्र, कोरोमण्डल तट, नदी घाटियों और पश्चिमी बंगाल में तेल प्राप्त होने की उत्तम सम्भावनाएँ हैं।