वायु, जल, भूमि, वनस्पति, पेड़ पौधे, पशु, मानव सब मिलकर पर्यावरण बनाते हैं। प्रकृति में इन सबकी मात्रा और इनकी रचना कुछ इस प्रकार से व्यवस्थित है कि पृथ्वी पर एक संतुलनमय जीवन चलता रहे। पिछले 100 वर्षों में जब से मनुष्य ने प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिये अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियाँ अर्जित की, सुख सुविधा के साधन जुटाए, बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु औद्योगिक क्रांति का सहारा लिया, तभी से प्रकृति का सामान्य रूप विखंडित होने लगा। वर्तमान समय में मानव तकनीकी विकास को आधार बनाकर जीवन का उच्चतम स्तर प्राप्त करना चाहता है।
आज की मानव केन्द्रित और स्वार्थी विचार धारा ने प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दुरुपयोग किया है। आज प्रकृति के समस्त जीवों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। स्थिति अत्यंत ही दयनीय है। इस विकराल संकट के उद्भव के मूल में मानव द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ है। स्वयं अर्जित इस संकट से मुक्ति के लिये मनुष्य को लगातार प्रयास करना होगा।
आज के मानव को पर्यावरण से जुड़े कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कई प्राकृतिक आपदायें मानव के सामने सुरसा के समान मुँह खोले खड़ी हैं। इसके भीषण परिणाम ने मानवता को द्रवित कर दिया है। ऐसे बदले परिवेश में वैज्ञानिकों, शिक्षा, विद्या । समाज सेवकों, नीति निर्धारकों आदि का ध्यान पर्यावरण की ओर आकर्षित हुआ है।
सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसे में आम नागरिका, का भी कर्तव्य बनता है कि वे इस क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। पर्यावरण संरक्षण में विद्यार्थी भी योगदान कर सकते हैं तथा पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। अत स्वयं के पर्यावरण के बारे में जानना हम सब के लिये जरूरी है।