अधिगम की प्रक्रिया अथवा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में ज्ञानेन्द्रियों की प्रमुख भूमिका होती है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि एक समय में जितनी ज्यादा ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय होगी, उतना ही अधिक उस समय का सीखा हुआ ज्ञान स्थायी होगा। जब तक एक बच्चा स्वयं पढ़ता है, तो उसकी केवल एक दृश्य इन्द्रिय सक्रिय रहती है, परन्तु जब वह किसी अन्य से या अपने से उस प्रकरण को सुनता है तो उसकी दृश्य इन्द्रिय के साथ-साथ श्रवण इन्द्रिय भी सक्रिय हो जाती है।
इसके साथ ही सुनने के बाद उस प्रकरण से संबंधित प्रयोग करता है, तो उसका मस्तिष्क, हाथ-पैर और पूरा शरीर सक्रिय हो जाता है। अतः कहा जा सकता है कि सीखा हुए ज्ञान को बालक लम्बे समय तक याद रख पाता है क्योंकि इस ज्ञान में उसकी सारी ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय रहती है। ज्ञानेन्द्रियाँ जितनी अधिक सक्रिय होगी, सीख हुआ ज्ञान उतना ही अधिक स्थायी होगा।