इस समझ से उभरता है कि शिक्षा को उसके सामाजिक संदर्भ से जुदा नहीं किया जा सकता। प्राथमिक स्कूल के स्तर पर पर्यावरण अध्ययन बच्चे को ऐसे कौशल और व्यवहार उपलब्ध कराता है जिससे कि वे अपने परिवेश और समुदाय से जानकारी एकत्र करते हुए उसका इस्तेमाल कर सकें।
प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को पर्यावरण के बारे में जानने के लिये खुला छोड़ दें। जिससे कि उनकी क्षमताओं में पैनापन आ सके। यह एक ऐसी स्थिति हो सकती है, जिसमें बच्चे स्वयं अपनी मनपसंद दिशा में ज्ञान को अर्जित करें या बिल्कुल ही न करें। हमारा फोकस, प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को अपनी क्षमताओं के साथ उत्साही और खोजी बनाने और उनमें मौजूद कौशलों के साथ पर्यावरण से और पर्यावरण के बारे में सोखने पर है ।
एक दूसरा पहलू यह है कि बच्चे ने अपनी मर्जी से पर्यावरण से जो कुछ सीखकर अपने को बदला है उसे वह कार्य रूप में परिणित करें। इस प्रकार के रवैये के निर्माण के लिये कुछ चीजों के पर्याप्त अभ्यास की ज़रूरत होती है।
जैसेबीजों को बोना, वृक्षों की सुरक्षा, पानी की बर्बादी रोकना, साफ सफाई आदि। पर्यावरण अध्ययन में बच्चों को ऐसा मंच देना जिससे वे खास नजरिये से सोचे, समझें, अभिव्यक्त करें और अपने साथियों के साथ साझा करें व अभ्यास करें इन स्कूलों में जहाँ बच्चे स्वयं प्रयास करते हैं वे उन बच्चों से बेहतर सीख पाते हैं जिन्हें मात्र जानकारियों का पुलिन्दा दे दिया जाता है ।