बच्चों में कौशलों के विकास तथा कौशलों में निपुणता हासिल करने के लिए बार-बार अभ्यास करना महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पर्यावरण शिक्षा में शामिल किए गए कौशल है-अवलोकन, वर्णन करना, पहचानना, प्रयोगात्मक खोज और प्राकृतिक घटनाएँ। इन कौशलों में निपुणता के लिए निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है। हर बार के प्रयास से हम उस कौशल पर थोड़ी -थोड़ी पकड़ हासिल करते जाते हैं।
बच्चे गलतियों से ही सीखते हैं और उनमें सुधार करते जाते हैं। कुछ प्रयासों के पश्चात् बच्चे उस कौशल को करते-करते इतने पारंगत हो जाते हैं कि उन्हें वह कार्य बहुत आसान लगने लगता है। उदाहरण- साइकल चलाना, चित्र बनाना, भाषा सीखना, तैरना आदि ।
वर्तमान शालेय व्यवस्था में इसकी आवश्यकता इसलिए है क्योंकि हमारे पर्यावरण की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें सजीवों के रूप में अपना विकास व पोषण करने हेतु आवश्यक तत्व एवं प्रक्रियाएँ विद्यमान है। इसके विषय में गहरी समझ विकसित करना, जानकारी प्राप्त करना जिससे कार्यकारण संबंध स्पष्ट हो सके तथा उपयुक्त कौशलों द्वारा इन पर्यावरणीय परिस्थितियों का उपयोग करते हुए जीवन को बेहतर बना सके, विवेकपूर्ण निर्णय ले सके, पर्यावरण अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है। बच्चों में कौशलों के विकास को प्रोत्साहन दिए जाने से उनका सीख हुआ ज्ञान अधिक स्थायी हो सकेगा।