भाषा को एक विषय के रूप में बढ़ाने का अर्थ यह हुआ जैसे हम विज्ञान पढ़ते हैं, सामाजिक अध्ययन पढ़ते हैं वैसे ही हिन्दी | हमारा झुकाव जल्दी से ही साहित्यिक कविताओं, कहानियों व उनके विश्लेषण पर होता है।
भाषा को समझने व उसके उपयोग व ताकत को समझने व उसमें उपयोग व ताकत को बढ़ाने के लिए भाषा को हम विषय के रूप में स्वीकार करते हैं। प्राथमिक शालाओं में भाषा को उतना ही समय मिलता है जितना अन्य विषयों को । ऐसा उस समय होता है जब बहुत से बच्चों के लिए स्कूल, शिक्षक, किताब की भाषा उनकी अपनी भाषा से दूर से लेकर बहुत दूर तक है।
भाषा सिखाने का मतलब लिपि, वर्तनी, सुन्दर लिखाई व व्याकरण बन जाते हैं। महत्व की दृष्टि से समय के असंतुलित विभाजन के कारण भाषा से खेलने, उसमें डूबने, उसे अहसास करने न आत्मघात करने का समय ही नहीं मिलता। स्कूल में भाषा एक विषय है, आधार नहीं ।
आधार बन रहा हो तो जरूरी नहीं है कि उसमें कुछ दिखे और बच्चा क्रमबद्ध ढंग से कुछ सीखता व उसे प्रदर्शित ढंग से कुछ सीखता व उसे प्रदर्शित करता दिखे। आधार तो जमीन के नीचे ही रहता है न। स्कूलों में इतना धैर्य कहाँ वे तो इमारत खड़ी कर देते हैं। इसलिए स्कूल में भाषा एक विषय है।