आधुनिक भारत के नवनिर्माण में विनोबा भावे का महत्वपूर्ण स्थान है। बिनोवा भावे मुख्यतः भूदान आंदोलन के लिए प्रसिद्ध हैं।
ग्रामीण पुनर्निर्माण के लिए विनोबा भावे ने भूदान आन्दोलन प्रारंभ किया। वे भूदान आन्दोलन के द्वारा सम्पुर्ण व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहते थे। विनोबाजी की मान्यता थी की देश में लगभग 5 करोड़ भूमिहीन लोग हैं। उनके लिए 5 करोड़ एकड़ भूमि की आवश्यकता है। भूदान के द्वारा भूमि के पुनर्वितरण का कार्य किया जाना है। विनोबा ने भूदान के तीन लक्षण निर्धारित किये।
1. गाँवों में शक्ति का विकेन्द्रीकरण |
2. प्रत्येक व्यक्ति का भूमि और सम्पत्ति का अधिकार हो ।
3. मजदूरी में भेद-भाव नहीं बरता जाय। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विनोबाजी गांव-गांव घूमकर भूमिदान के लिए लोगों से अपील करते थे।
भूदान आन्दोलन भूमि समस्या का समाधान करने तथा भूमि के पुनर्वितरण के लिए एक देशव्यापी आन्दोलन है। इसके प्रणेता आचार्य विनोबा भावे थे। जिन्होंने 1951 ई० में आन्ध्रप्रदेश के एक गाँव में इस आन्दोलन को जन्म दिया। इस आन्दोलन के पीछे आचार्य विनोबा भावे का विचार था कि हवा, पानी, प्रकाश आदि ईश्वरीय वस्तुओं की तरह भूमि भी भगवान की दी हुयी वस्तु है। अतः इस पर सभी व्यक्तियों का समान अधिकार है। सदियों की दोषपूर्ण आर्थिक व्यवस्था के कारण आज भूमि व्यक्तिगत सम्पत्ति बन गयी है। जहाँ कुछ व्यक्तियों के पास उनकी आवश्यकता से बहुत अधिक भूमि है वहीं बहुत से व्यक्ति भूमिहीन एवं दरिद्र हैं। विनोबा भावे अपने को भूमिहीनों का प्रतिनिधि मानकर भूमिपतियों से उनकी जमीन का कम से कम 1/6 भाग दान के रूप में माँगते थे। इससे प्राप्त होने वाली भूमि का भूमिहीन लोगों के बीच वितरण किया जायेगा। इस प्रकार, भूदान आन्दोलन का उद्देश्य शांतिपूर्ण ढंग से भूमि समस्या का समाधान करना है। इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं कि भूदान आन्दोलन भारत में भूमि की समस्या का समाधान करना है। इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं कि भूदान आन्दोलन भारत में भूमि की समस्या का समाधान करने का एक अच्छा तरीका है। इसके कारण लोगों के भूमि संबंधी दृष्टिकोण में अवश्य परिवर्त्तन हुआ है। यह इस आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता है।