प्रदूषण (Pollution) - विश्व में पर्यावरण (Environment) के विभिन्न घटकों (Components) की संरचना या उनके संतुलन में जो गड़बड़ी या व्यवधान उत्पन्न होता है, उसे प्रदूषण कहते हैं।
आज जनसंख्या (Population) की वृद्धि और औद्योगीकरण (Industrialisation) की बहुलता तथा वनों (Forests) के ह्रास के कारण प्रदूषण में काफी वृद्धि हो रही है।
इस प्रदूषण से मानव जीवन एवं जंतुओं, पौधों इत्यादि को काफी हानि पहुँचती है। आज प्रदूषण हवा, पानी और मिट्टी (मृदा) प्रदूषक के रूप में (Air, Water And Soil as Pollutants) के रूप में हैं।
वैसे तो प्रदूषक बहुत से हैं, परंतु इनमें मुख्य हवा (वायु), पानी और मिट्टी (मृदा) है।
वायु (हवा) प्रदूषण के रूप में (Air as Pollutant)
वायु के कारण होने वाले प्रदूषण को वायु प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।
वायु (हवा) मनुष्य, जन्तुओं एवं पेड़ पौधों के लिए अनिवार्य है। वायुमंडल में मौजूद गैस एक निश्चित परिमाण व अनुपात में होती है।
जब वायु में अवांछित तत्त्व (Undesirable Element) मिल जाते हैं, तब उसका मौलिक संतुलन नष्ट हो जाता है, जो के लिए घातक होता है।
वायु के दूषित होने की प्रक्रिया (Process) को ही वायु प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।
मोटरगाड़ी, रेलगाड़ी व वायुयान इत्यादि विभिन्न प्रकार के वाहनों से निकले धुएँ में कार्बन मोनोक्साइड (Carbon Monoxide), सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur Dioxide), सीसा (Lead) मुख्य रूप से उपस्थित रहते हैं, जो वायु में मिल जाने पर उसे प्रदूषित कर देते हैं।
इसके अतिरिक्त कोयला, लकड़ी इत्यादि के जलने से धुआँ उत्पन्न होता है, जिसमें कार्बन मोनोक्साइड के अतिरिक्त हाइड्रोजन व अन्य घातक गैसें रहती हैं।
फिर परमाणु रिएक्टर (Atomic Reactors) से निकले धुएँ में बहुत से रेडियोएक्टिव पदार्थ, जैसे - यूरेनियम (Uranium), प्लूटोनियम (Plutonium) इत्यादि रहते हैं, जो वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।
वायु प्रदूषण के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे मनुष्य को त्वचा रोग (Skin Disease), मुहांसे और श्वास सम्बन्धी रोग हो जाते हैं।
वायु प्रदूषण रोकने के लिए उन समस्त साधनों की जो वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं, को नियंत्रित किया जाना चाहिए; ताकि वायु प्रदूषण कुछ सीमा तक नियंत्रित हो सके।
फिर काफी संख्या में पेड़-पौधे लगाएँ जाएँ। कल कारखानों को रिहायसी आबादी से दूर होना चाहिए और उनकी चिमनियों से निकलने वाले धुएँ को साफ करने के लिए विशेष प्रकार के फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए।
पेट्रोल व डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग यथासंभव कम करना चाहिए। कूड़ा-कर्कट आदि को मकान के सामने सड़क या गली में न फेंक कर उन्हें आबादी से दूर किसी गड्ढे में फेंकना चाहिए जिससे उनसे निकलने वाले दूषित वायु से वायु प्रदूषण कम हो।
जल प्रदूषण के रूप में (Water as Pollutant)
हमारी अनिवार्य आवश्यकताओं में वायु के बाद जल का ही स्थान है।
जल प्रदूषण मुख्य रूप से जल में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) तथा ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी, कुछ अवांछित धातुओं की उपस्थिति तथा कुछ घातक रोगों के कीटाणुओं की उपस्थिति के फलस्वरूप होता है।
कल कारखानों से निकले हुए दूषित रासायनिक पदार्थ प्राय: नदियों में बहा दिये जाते हैं, और इसके साथ ही बड़े बड़े उन शहरों का मैल (सीवर द्वारा) जो नदियों के तट पर स्थित है, द्वारा नदियों में बहा दिया जाता है, जिससे जल प्रदूषित हो जाता है।
जल में मृतजीवी जंतु, कूड़ा-कर्कट या फिर नदी या तालाबों में नहाने, कपड़ा साफ करने में डिटरजेन्ट पाउडर (Detergent Powder) का उपयोग करने से भी जल प्रदूषण उत्पन्न होता है।
वायु प्रदूषण की भाँति जल प्रदूषण का भी मानव स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है।
प्रदूषित जल पीने से पीलिया, हैजा, टॉयफॉयड आदि रोग हो जाते हैं। प्रदूषित जल खेती योग्य जमीन को भी नष्ट कर देता है। नदियों के जल के प्रदूषित हो जाने के कारण जलीय जन्तु के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जल प्रदूषण को रोकने के लिए कूड़ा-कर्कट को जलाशयों में न डालकर किसी गड्ढे में डाल देना चाहिए। सीवर का जल शहर के बाहर दोषरहित करके ही नदियों में डालना चाहिए। जिन फसलों पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया गया हो उन खेतों से बहने वाले पानी को वैसे जलाशयों में नहीं जाने देना चाहिए, जिनके पानी पीने के काम में आते हैं। जिन तालाबों के पानी जानवर पीतें हों, उन तालाबों पर कपड़े या गंदी वस्तुएँ नहीं धोना चाहिए।
मिट्टी (मृदा ) प्रदूषण के रूप में (Soil As a Pollutant)
मिट्टी में विभिन्न प्रकार के लवण, खनिज तत्त्व, कार्बनिक पदार्थ (Carbonic Substance), गैसों व जल तथा अपघटक निश्चित परिमाण एवं अनुपात में होते हैं।
कुछ हानिकारक रसायनों के कारण मिट्टी में अपघटकों का नाश हो जाता है, जिससे वातावरण में मृत तथा सड़े गले कार्बनिक पदार्थ एकत्रित होने लगते हैं, और उसका प्राकृतिक संतुलन नष्ट हो जाता है।
मिट्टी में विभिन्न पदार्थों की मात्रा एवं उनके अनुपात में उत्पन्न परिवर्तन में को मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) कहते हैं।
मृदा प्रदूषण का कारण खेतों में विभिन्न प्रकार के ऊर्वरक (Fertilisers) का डालना है। इसके अतिरिक्त सबसे बड़ा कारण है, कीटनाशक दवाओं (Pesticides) जिसमें D.D.T. गैमेक्सीन, इल्ड्रीन इत्यादि का छिड़काव।
ये सब घोल के रूप में तैयार कर फसलों पर छिड़के जाते हैं। इसकी कुछ मात्रा मिट्टी में भी मिल जाती है, जो बरसात के दिनों में जल के साथ मिलकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँकर मृदा प्रदूषण करते हैं।
मृदा प्रदूषण का भी मानव जीवन पर घातक प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ मानव शरीर में पहुँचकर अनेक रोग उत्पन्न करते हैं। इसी कारण बहुत-से देशों में D.D.T. का प्रयोग लगभग बंद कर दिया गया है।
मिट्टी में प्रदूषण (अर्थात् मृदा प्रदूषण) रोकने के लिए कृत्रिम ऊर्वरकों (Artifical Fertilisers) के स्थान पर देशी खाद का उपयोग करना चाहिए।
फसलों पर छिड़कने के लिए कीटनाशक दवाओं का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए। कीटनाशक दवाओं को खाने वाले अनाज में सीधे नहीं मिलाना चाहिए और फिर अनाजों को इस्तेमाल में लाने के पहले इन्हें खूब अच्छी तरह धो लेना चाहिए।