निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें- मैं क्षितिज भृकृटी पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रजकण पर जलकण हो वरसी नव-जीवन अंकुर वन निकली।
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निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें- मैं क्षितिज भृकृटी पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रजकण पर जलकण हो वरसी नव-जीवन अंकुर वन निकली। 

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उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री महादेवी वर्मा ने अपना वास्तविक परिचय देना चाहा है। वह कह रही हैं कि उनके जीवन की सार्थकता लोकमंगल से है। इन पंक्तियों में कवयित्री का अभिप्राय है कि संसार के पाप और परितापरूपी रजकणों पर उसकी सहानुभूति के आँसू गिरते हैं और उनसे पवित्र सृष्टि के अंकुर निकलते हैं। कवयित्री अपने आँसुओं के द्वारा न मार्ग को पंकिल बनाना चाहती है। और न अपनी निशानी छोड़ना चाहती है, बल्कि उनके द्वारा वह संसार को सुखी बनाना चाहती है।

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