रोज कहानी अज्ञेय जी द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में मध्यवर्गीय एक महिला की एकरसता को मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया गया है। वातावरण, परिस्थिति और उसके प्रभाव में ढलते हुये एक गृहणी के चरित्र का यहाँ मनोवैज्ञानिक उद्घाटन हुआ है। मालती एक चंचल महिला थी । लेखक उससे चार वर्षों के बाद मिलने जाता है। लेखक को देखकर मालती को कोई विशेष प्रसन्नता नहीं होती। वह अपने ही घर में अनमनी सी बैठी रहती है। मालती के पति डॉ० महेश्वर घर पर आते हैं और फिर एक-दो चक्कर लगा कर अपने दवाखाना चले जाते हैं। दोपहर के भोजन के समय लेखक मालती को भी साथ खाने को कहते हैं लेकिन वह कहती है कि वह बाद में खायेगी। तभी मालती का बच्चा रोने लगता है और वह चली जाती है।
लेखक मालती से उसके पढ़ने-लिखने की बात पूछता है तो मालती बताती है कि यहाँ उसके पढ़ने-लिखने की कोई सुविधा नहीं है, और न कोई पुस्तक ही। शाम को डा० महेश्वर विलम्ब से घर लौटे। पूछने पर उन्होंने बताया कि 'ग्रेग्रीन' का ऑपरेशन करने में अधिक समय लग गया। इस घटना के बाद मालती बरतन मॉजने चली जाती है। वहाँ उसे आम में लिपटे अखबार का एक टुकड़ा मिला जिसे पढ़कर मालती का स्कूली जीवन साकार हो गया। उसे याद आया कि
स्कूली जीवन में वह कितना उद्धृत और चंचल थी। किन्तु आज कितनी शांत और सीधी है। रात्रि भोजन के बाद मालती 11 बजे तक जगती है। उसका बेटा महेश्वर पास सोता है। किन्तु अचानक वह पलंग से खिसककर नीचे गिर जाता है और रोने लगता है। मालती आकर बच्चे को उठा लेती है। लेखक के पूछने पर वह बताती है कि यह रोज की घटना है। इस प्रकार इस कहानी में मालती के परिवार के नीरस, यांत्रिक तथा अनिच्छापूर्ण जीवन का वर्णन है।