पाठ्यक्रम विकास की आवश्यकता के दो मुख्य बिन्दु निम्नलिखित है -
1. छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन हेतु–पाठ्यक्रम विकास की सर्वप्रथम आवश्यकता छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने हेतु है। वस्तुतः पाठ्यक्रम विकास की प्रक्रिया में अधिगम अवसरों के नियोजन द्वारा छात्रों के व्यवहार में विशिष्ट परिवर्तन लाया जाता है तथा परीक्षण द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि किस सीमा तक अपेक्षित परिवर्तन हुआ है।
2. परिमार्जित ज्ञान की प्राप्ति हेतु - मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु है तथा विभिन्न माध्यमों से वह ज्ञान प्राप्ति के प्रयास करता रहता है। समय-समय पर बालकों को भी परिष्कृत व परिमार्जित ज्ञान की आवश्यकता का अनुभव होता है और बालकों की इस आवश्यकता की पूर्ति पाठ्यक्रम विकास द्वारा की जा सकती है। पाठ्यक्रम विकास के माध्यम से हम समय के साथ हुए परिवर्तनों एवं बदलते युग के साथ बदलते हुए ज्ञान को भी बालकों तक पहुँचा सकते हैं।