जय प्रकाश नारायण के बारे में वर्णन करें। Jaiprakash Narayan Ke Bare mein Varnan Karen.
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जय प्रकाश नारायण के बारे में वर्णन करें। Jaiprakash Narayan Ke Bare mein Varnan Karen.

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जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र के प्रबल समर्थक थे। यह उन्हीं के अथक प्रयासों का फलं था कि कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा इकट्ठा करके उन्होंने एक बार तो ऐसी पार्टी खड़ी कर दी जिसने देश के शासन पर एकाधिकार प्राप्त काँग्रेस को परास्त करके भारत के तथा विश्व के लोकतांत्रिक इतिहास में एक अभूतपूर्व कार्य कर दिखाया, भले ही उस पार्टी में एकाध बुद्धिमान और ईमानदार सदस्य के अतिरिक्त प्रायः ऐसे थे जो अपनी-अपनी डफली लिए हुए थे और एकाध तो ऐसे प्रसिद्ध घमंडी, महत्वाकांक्षी थे जिन्होंने सदैव जहाँ रहे प्रांतीय सरकार में या पार्टी में स्वयं को सर्वोच्च आसन पर बैठाने के लिए तोड़-फोड़ की। उन्होंने ही जय प्रकाश नारायण को 'लोकतंत्र के देवदूत' की संज्ञा दी। ये उनके निम्नलिखित लोकतांत्रिक विचार ही थे, जिन्होंने उनको विश्व प्रसिद्धि दिलाई। 

(i) आधुनिक लोकतंत्र की सफलता नैतिक साधनों से ही सम्भव हो सकती है।

(ii) जब तक जनता में आध्यात्मिक गुणों का विकास नहीं होगा तब तक इसमें सन्देह ही रहेगा कि लोकतंत्र शासन सफल हो सकता है।

(iii) लोकतंत्र के ये आधार हैं- सत्य, प्रेम, सहयोग, अहिंसा, कर्त्तव्यपरायणता, उत्तरदायित्व एवं सह-अस्तित्व की भावना ।

(iv) स्थानीय संस्थाएँ जनता के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में काम करें तथा राजनीतिक दल स्थानीय संस्थाओं से दूर रहें, तभी भारतीय लोकतंत्र सफल हो सकता है।

(v) भारतीय लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब स्थानीय संस्थाएँ जनता के विचारों इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुकूल हो ।

(vi) सभी अपने व्यक्तिगत हितों का बलिदान करे, तभी भारत आत्मनिर्भर बन सकेगा। सार्वजनिक हितों की सुरक्षा करके ही देश में लोकतंत्र शासन प्रणाली को स्थिर बनाया जा सकता है।

(vii) आर्थिक क्षेत्रों में विकेन्द्रीकरण की नीति के द्वारा भारत से आर्थिक विषमता दूर हो सकती है।

(viii) सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए नागरिकों के हितों में समानता होनी आवश्यक है। हितों की समानता के आधार पर ही राज्य विहीन तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना सम्भव है।

(ix) आधुनिक लोकतंत्रीय संसदीय प्रणाली भारतीय लोकतंत्र की रक्षा करने में असमर्थ है। (x) हम वास्तविक लोकतंत्र शासन पद्धति का अनुभव तभी कर सकते हैं, जब विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास हो जाय।

(xi) राज्य एक अनैतिक संस्था है और वह व्यक्तियों में नैतिक गुणों का विकास करने में समर्थ नहीं है।

(xii) दल विहीन लोकतंत्र की स्थापना होनी चाहिये क्योंकि राजनीतिक दलों के कारण लोकतंत्र भ्रष्ट हो चुका है और उनका विकास अवरूद्ध हो गया है।

(xiii) वयस्क मताधिकार लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं। भारतीय लोकतंत्र ग्राम समाज की राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होना चाहिये।

(xiv) जयप्रकाश नारायण आधुनिक लोकतंत्र की नौकरशाही के ब्रिटिशकालीन राजतंत्र के अनुरूप समझते थे।

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