पर्यावरण प्रबन्धन में शिक्षा की भूमिका बताइये। Paryavaran Prabandhan Mein Shiksha Ki Bhumika Bataiye.
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पर्यावरण प्रबन्धन में शिक्षा की भूमिका बताइये। Paryavaran Prabandhan Mein Shiksha Ki Bhumika Bataiye.

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पर्यावरण प्रबंधन में कार्यक्रमों, अभिक्रमों तथा कानून व्यवस्था का उल्लेख किया गया है और मानवीय क्रियाओं के प्रभाव के आकलन को भी महत्व दिया है। प्रबंधन के इन कार्यक्रमों से अस्थायी रूप में पर्यावरण संरक्षण में सफलता मिल सकती है। स्थायी रूप से पर्यावरण की समस्याओं का समाधान पर्यावरण शिक्षा द्वारा ही हो सकता है, क्योंकि पर्यावरण की अधिकांश समस्याएँ मानवीय क्रियाओं से ही उत्पन्न होती हैं।

इसलिए मानवीय सचेतना अभिवृत्तियों तथा मूल्यों के विकास से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। पर्यावरण शिक्षा का मुख्य लक्ष्य पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखना है। शिक्षा द्वारा बालकों, युवकों तथा वृद्ध को ऐसा वातावरण दिया जाए जिससे पर्यावरण समस्याएँ मनुष्यों के कार्यों से ही उत्पन्न न हो। अतः इनके संसाधन हेतु मूल्यांकन करने तथा निर्णय लेने का भी अवसर दिया जाए। प्राकृतिक सभी प्रकार के स्रोत सीमित हैं। अतः भावी पीढ़ी को उपयोग के लिए उन्हें संचित रखा जाए। इस प्रकार पर्यावरण शिक्षा में पर्यावरण प्रबंधन में सहायता प्राप्त हो सकती है।

1. सम्पूर्ण पर्यावरण की जानकारी दी जाती है।

2. पर्यावरण संबंधी विविध प्रकार के अनुभव तथा बोध कराया जाना ।

3. पर्यावरण संरक्षण के प्रति सही अभिवृत्तियों तथा मूल्यों का विकास किया जाता है।

4. पर्यावरण समस्याओं के समाधान हेतु व्यावहारिक कौशलों का भी विकास किया जाता है।

5. शिक्षा के कार्यक्रमों का मूल्यांकन किया जाता है जिससे पर्यावरण संबंधी उपायों की प्रभावशालीलता का आकलन करते हैं, तथा

6. समस्याओं के समाधान हेतु सक्रिय भागीदारी के लिए अवसर प्रदान किया जाता है।

इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक के लिए पर्यावरण शिक्षा के पाठ्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसमें राष्ट्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् की महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्वविद्यालय स्तर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' पर्यावरण शिक्षा का आयोजन कर रहा है।

पर्यावरण प्रबंधन में व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा पर्यावरण प्रशिक्षण के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। पर्यावरण की जानकारी का क्षेत्र व्यापक तथा अन्तःअनुशासन प्रवृत्ति का है। अतः विद्यालय तथा विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न विषयों द्वारा पर्यावरण की जानकारी प्रदान की जा सकती है, क्योंकि पर्यावरण का संबंध सामाजिक तथा वैज्ञानिक विषयों से अधिक है। पर्यावरण संरक्षण के लिए कौशल, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों का विकास शिक्षा संस्थाओं द्वारा किया जाता है। इसमें अध्यापक शिक्षा संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। पर्यावरण संबंधी ज्ञान, कौशल, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों का विकास करना अध्यापक शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य होता है।

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