वर्ण आधारित शिक्षण सिद्धांत का वर्णन कीजिए। Varn Aadharit Shikshan Siddhant Ka Varnan Kijiye.
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वर्ण आधारित शिक्षण सिद्धांत का वर्णन कीजिए। Varn Aadharit Shikshan Siddhant Ka Varnan Kijiye.

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वर्ण आधारित शिक्षण सिद्धांत - पढ़ना सिखाने की शुरुआत के लिए 16वीं शताब्दी में ही जर्मनी में इकस्लेनर ने शिक्षकों को इस बात पर ध्यान देने को कहा कि इन्सानों ने सबसे पहले पढ़ना कैसे सीखा। उन्होंने कहा कि आप बच्चों को बोले गए शब्दों को उनको बनाने वाली ध्वनि इकाइयों के टुकड़ों को मन ही मन बाँटकर पहचान पाना सिखाएँ और फिर उन्हें अक्षर सिखाएँ (डेविस 1973) पिछली शताब्दी के मध्य में रूस में उशनिस्की ने ऐतिहासिक तरीके की वकालत की, यह तरीका अक्षर ध्वनियों में लिखने की पद्धति का विकास किस प्रकार हुआ होगा, उन पर आधारित था ।

 चूँकि यह आविष्कार अमूर्त ध्वनि-टुकड़ों के समूह को पहचानने पर निर्भर थी जो हमारी भाषा की रचना करते हैं, इसलिए बोले गए शब्दों के इन पहलुओं पर जाना बच्चे को पढ़ना सिखाने का पहला कदम है। उदाहरण के लिए, बच्चे को एक ध्वनि इकाई को पहचानना सिखाने के लिए बहुत से बोले गए शब्दों को चुनते हैं, जो एक ही ध्वनि से शुरू होते हैं और फिर किसी बोले गए शब्द के पहली ध्वनि और आखिरी ध्वनि टुकड़े को पहचानने का प्रयास करवाते हैं।

 इस तरीके को कभी भी ठीक से इस्तेमाल करने का मौका नहीं मिला। हालाँकि पढ़ना सीखना प्रारंभ करने के लिए कुछ इसी तरह के तरीके 1960 व 1970 के दशक के दौरान रूस से खोजे गए। इनका अध् ययन एल्कोनिन ने किया था । 

ध्वनि सिद्धांत के ज्ञान का अर्थ यह जानना कि किसी शब्द के अक्षरों का संबंध उस शब्द की अलग-अलग ध्वनियों से है, जो कि अक्षरों को स्थायी ध्वनियों के चिन्ह रूप में देखता है। 

ज्ञान अपने आप बच्चे में बनता रहता है और इसके अपने आप उभरने का इंतहार करना चाहिए या इसे भी खासतौर पर पढ़ाकर सिखाया जा सकता है ।

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