जनांकिकीय संक्रमण (Janankikiya Sankraman) सिद्धान्त का प्रतिपादन जनांकिकी के विद्वान एफ० डब्लयु० नोटेस्टीन ने किया था।
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि जन्मदर और मृत्युदर पर निर्भर करती है। अविकसित देशों में जन्म दर और मृत्यु दर ऊँची रहती है।
जैसे-जैसे देश विकास करता है, उसकी जन्म दर और मृत्यु दर में परिवर्तन होने लगता है। इस परिवर्तन को जनांकिकीय संक्रमण या चक्र कहते हैं।
प्रत्येक देश अविकसित अवस्था से विकसित अवस्था तक पहुँचते हुए जनांकिकीय संक्रमण की मुख्य तीन अवस्थाओं से गुजरता है।
ये तीन अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं—
i. प्रथम अवस्था (First Stage)— इस अवस्था में जन्म दर और मृत्यु दर दोनों उच्च होती है। अज्ञानता और निरक्षरता के कारण उच्च जन्म दर और महामारियों के कारण उच्च मृत्यु दर रहती है।
इसके फलस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि धीमी होती है। 200 वर्ष पूर्व विश्व के अधिकांश देश इसी अवस्था में थे। वर्षा वनों के आदिवासी अभी भी इसी अवस्था में हैं।
ii. द्वितीय अवस्था (Second stage)— इस अवस्था के आरंभ में जन्म दर ऊँची बनी रहती है, किन्तु यह समय के साथ शिक्षा के स्तर में सुधार के साथ घटती जाती है। स्वास्थ्य संबंधी दशाओं और स्वच्छता में सुधार के कारण मृत्यु दर जन्म दर की तुलना में काफी तेजी से घटती है। इस कारण जनसंख्या में आरंभ में काफी तेजी से वृद्धि होती है। चीन और भारत इसी अवस्था से गुजर रहा है।
iii. तृतीय अवस्था (Third stage)— इस अवस्था में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों बहुत कम हो जाती हैं। अतः जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती है या मंद गति से बढ़ती है।
जनसंख्या नगरीय और शिक्षित हो जाती है तथा उसके पास तकनीकी ज्ञान होता है।
ऐसी जनसंख्या विचार पूर्वक परिवार के आकार को नियंत्रित करती है। कनाडा, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका इत्यादि इसी अवस्था में हैं।