1. अनुच्छेद 76 के अनुसार भारत में महान्यायवादी पद का सृजन किया गया है।
2. वह भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होता है जिसका कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
3. अनुच्छेद 88 के अनुसार वह ना तो संसद सदस्य होता है, ना ही मंत्रिमंडल का सदस्य फिर भी वह किसी भी सदन या समिति को संबोधित कर सकता है, पर उसे मत देने का अधिकार नहीं होता है।
4. इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं उसे राष्ट्रपति कभी भी पदच्युत कर सकता है।
5. महान्यायवादी प्रथम विधि अधिकारी होता है।
6. महान्यायवादी पद पर नियुक्ति हेतु सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान योग्यता होनी चाहिए।
7. महान्यायवादी को भारत के राज्य क्षेत्र के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार प्राप्त है।
8. इनके वेतन एवं भत्ते भारत की संचित निधि से दिए जाते हैं।
9. संसद के दोनों सदन महान्यायवादी से कानूनी परामर्श प्राप्त करते हैं।
10. अपने पद के आधार पर महान्यायवादी को संसद के सदस्यों के समान ही विशेषाधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 105(4)
11. महान्यायवादी के कार्य संपादन में सहायता देने हेतु एक सॉलिसिटर जनरल तथा दो अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी नियुक्त किए जाते हैं।