भूषण वीर रस के महाकवि हैं। रीतिकाल के अन्य कवि जहाँ अपने आश्रयदाता राजाओं की काम वासना को दुहराते रहे वहाँ भूषण ने अपने आश्रयदाता शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का गान कर राष्ट्रीय चेतना को ओजपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
प्रस्तुत कविता में अनेक उपमाओं के सहारे कवि ने यह अनुभव कराना चाहा है कि महावीर शिवाजी मुगलों के ऊपर भारी थे। वे उनके आतंक से परेशान थे। शिवाजी ने मुगल शक्ति को मथकर हिन्दू जाति के गौरव को तेजस्विता प्रदान की। कवि कहता है कि जिस तरह इन्द्र ने जंभासुर को परास्त कर देव शक्ति की प्रबलता स्थापित की थी। जिस तरह समुद्र के जल पर उसमें से उठने वाली आग समुद्र की जीव सत्ता को विकल बना देती है और जिस तरह दंभी रावण को पराजित कर श्री राम ने उसके आतंक को समाप्त कर दिया था। उसी तरह मुगल शिवाजी की शक्ति से निष्प्रभ हैं।
जिस तरह पवन बादल को छिन्न-भिन्न कर देता है। जिस तरह शिव ने कामदेव को भस्म किया था, जिस तरह परशुराम ने सहस्रबाहु को पराजित कर दिया था। उसी तरह मुगलों के लिए शिवाजी काल है।
जिस तरह दावाग्नि जंगल के वृक्षों को जलाकर जंगल को विरूप कर देती है, चीता मृगों के झुड को अस्त व्यस्त कर देता है तथा सिंह हाथियों के झुंड को परेशान कर देता है उसी तरह शिवाजी ने मुगलों की दशा कर रखी है।
जिस तरह अंधकार पर प्रकाश भारी पड़ता है जिस तरह कृष्ण छोटे होते हुए भी कंस पर भारी पड़े उसी तरह मलेच्छ वंश अर्थात, मुसलमानों पर शिवाजी भारी हैं। सारांशतः कवि ने अनेक महान वीरों तथा प्रकृति के उपादानों की सहायता से शिवाजी की शक्ति का गुणगान किया है और मुगलों के विरूद्ध लड़ने की उनकी शक्ति को अपनी वाणी से ऊर्जा प्रदान की है।
वीर रस के तेजस्वी गायक कवि भूषण ने अपनी कविता में अपने दूसरे आश्रय दात्ता छत्रसाल की तलवार और उनको चलाने वाले छत्र साल की वीरता का यशोगान किया है। यदि शिवाजी ने भूषण को अतिशय सम्मान दिया था तो महावीर छत्र साल ने उनकी पालकी अपने कंधे पर उठाकर कवि को सम्मान देने का इतिहास रच दिया था।
भूषण ने इस कविता में अनेक उपमानों के सहारे बीरवर छत्रसाल की तलवार की मजबूती, आक्रमण करने और शत्रुओं को काटने में बिजली जैसी चपलता का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि म्यान से निकलते समय छत्रसाल की तलवार की चमक ऐसी कौंध पैदा करती है मानो प्रलय कालीन सूर्य की किरणें अन्धकार रूपी हाथियों को चीरती हुई बाहर निकल रही है। यह तलवार नागिन की तरह शत्रुओं के गले में लिपट कर उनका सिर धड़ से अलग कर देती है। मानो वह मुंडों की माला देकर शिव को रिझा रही हो।
कवि कहता है कि हे महावीर महाराज छत्रसाल, आपकी तलवार का कहाँ तक वर्णन करूँ? ऐसा लगता है कि इसने शत्रु से एक के एक वीर योद्धाओं को काट काटकर कालिका की तरह प्रसन्नता भरी किलकारी देते हुए काल को कलेवा देने का संकल्प ले रखा है। अभिप्राय यह कि महावली छत्रसाल अपनी तलवार से एक से एक बली शत्रुओं को काट डालने वाली तलवार के धनी हैं।