पर्यावरण एवं समाज आधुनिक समाज पर्यावरण की समस्याओं के प्रति जागरूक है तथा पर्यावरण की गुणवत्ता के लिये प्रयासरत है। पर्यावरण के विकास हेतु अनेक कार्यक्रम आरम्भ किये गये हैं। डाउन्स (1972) ने पर्यावरण के परिवर्तन हेतु सम्पूर्ण कार्यक्रम की शृंखला को अलिखित पाँच अवस्थाओं में रखा है जिसे 'समस्या ध्यान केन्द्रित चक्र' कहते हैं -
- प्रथम अवस्था—यह समस्या से पूर्व की अवस्था है इसमें समस्या के प्रति जनसाधारण सजग नहीं है अपितु कुछ विशेषज्ञ ही समस्या पर ध्यान दे पा रहे हैं।
- द्वितीय अवस्था - जनसमूह पर्यावरण की समस्याओं पर ध्यान दे रहा है तथा सचेत है। समस्याओं के समाधान हेतु संवेदनशील है, भले ही कितना ही व्यय समाधान हेतु क्यों न करना पड़े।
- तृतीय अवस्था - जनसमूह समस्या पर व्यय अथवा विनियोग के प्रति जानकारी रखता है। वह यह भी अनुभव करता है कि तकनीकी का विकास समस्या का उत्तम समाधान नहीं होता है।
- चतुर्थ अवस्था - पर्यावरण के विकास तथा समस्याओं के समाधान हेतु व्यय के कारण जनसमूह की रुचि कम होने लगती है, क्योंकि अधिक व्यय की आवश्यकता होती है। पर्यावरण समस्याओं के समाधान हेतु यह मुख्य कठिनाई है।
- अन्तिम समस्या अवस्था - पर्यावरण की समस्याओं में व्यय के कारण रुचि कम होने लगती है, परन्तु जब उसके भयंकर परिणामों की जानकारी होती है तब अचानक जनसमूह समाधान की रुचि उत्पन्न हो जाती है।
समाज इस प्रकार समाज को पर्यावरण की समस्याओं के परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसलिये पर्यावरण की समस्याओं के समाधान में रुचि लेता है। ऐसी अनेक सामाजिक संस्थायें हैं जो पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं ।