वाइरस या विषाणु के बारे में व्याख्या करें। Virus Ya Vishanu Ke Bare Mein Vyakhya Karen.
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वाइरस या विषाणु के बारे में व्याख्या करें। Virus Ya Vishanu Ke Bare Mein Vyakhya Karen.

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विज्ञान - जगत् में अबतक जितने प्राणियों एवं वनस्पतियों की जानकारी है उनमें सबसे सूक्ष्मतम जीव वाइरस है, जो बैक्टीरिया से भी कई गुणा छोटा होता है। यह एक परजीवी है जिसका प्राणियों तथा वनस्पतियों के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। पशु तथा वनस्पति आदिकाल से वाइरस के बीमारियों का शिकार होते आये हैं, लेकिन इस परजीवी का पता हाल ही में लगा है। 'वाइरस' लैटिन शब्द है जिसका अर्थ 'विष' होता है। इसका कारण यह है कि इससे अनेक बीमारियाँ होती हैं। वाइरस का पता सबसे पहले सन् 1886 ई० में जर्मनी के वैज्ञानिक एडोल्फ मेयर (Adolf Mayer) ने लगाया। उन्होंने तम्बाकू में चित्तीदार बीमारी का अध्ययन किया और सिद्ध किया कि यह एक वाइरस से उत्पन्न रोग है। इस वाइरस का नाम उन्होंने टोबैको मोजैक वाइरस (Tobacco Mosaic Virus – TMV) रखा। सन् 1892 ई० में रूसी वैज्ञानिक आइवानोस्की (Inwanosky) ने मेयर के सिद्धांत का समर्थन किया और कहा कि अगर चितकबरे रोगग्रस्त तम्बाकू के रस को स्वस्थ पौधे' में लगाया जाय तो उसमें भी शीघ्र ही यह रोग हो जाता है। अपने अनुसंधान के आधार पर उन्होंने बताया कि रोगग्रस्त तम्बाकू के पत्ते को अगर 55°C से अधिक तापक्रम पर गर्म किया जाय, तो उसमें संक्रमण शक्ति समाप्त हो जाती है। अमेरिका के डब्ल्यू० एम० स्टेनले (W.M. Stanley) ने 1935 ई० में एक महत्त्वपूर्ण खोज द्वारा तम्बाकू के मोजैक वाइरस को रवेदार रूप (Crystalline form) में प्राप्त किया। अंग्रेज वैज्ञानिक एन० डब्ल्यू० पीरी (N. W. Pirie) तथा एफ० सी० बॉडेन (F. C. Bawden) ने वाइरस के भौतिक एवं रासायनिक संगठन का अध्ययन किया।

विषाणु सूक्ष्मतम कण होते हैं जिन्हें केवल इलेक्ट्रोन सूक्ष्मदर्शी (Electron microscope) में ही देखा जा सकता है। ये कोशारहित या अकोशीय (Non-cellular) होते हैं। ये न्यूक्लियोप्रोटीन (Nucieoprotein = Nucleic acid + Protein) के बने होते हैं। इनका आन्तरिक भाग न्यूक्लिक एसिड (Nucleic acid) का बना होता है और बाहरी आवरण प्रोटीन (Protein) का होता है, जिसे कैप्सिड (Capsid) कहते हैं । विषाणुओं में आर० एन० ए० (RNA) एवं डी० एन० ए० (DNA) में कोई एक ही होता है। ये दोनों एक साथ कभी नहीं होते हैं। विषाणु का एक पूर्ण कण (Complete particle) जो न्यूक्लियोप्रोटीन (Nucleoprotein = Nucleic acid + Protein) का बना होता है, उसे वीरियोन (Virion) कहते हैं। विषाणु में उपापचय (Metabolism) नहीं होता है। इनमें श्वसन (Respiration) की क्रिया नहीं होती है। ये अपने बाहरी वातावरण (External environment) के प्रति सम्वेदनशील होते हैं। इनमें उत्परिवर्तन (Mutation) होता है। ये पूर्ण परोपजीवी (Oblight parasite) होते हैं। इनमें प्रजनन (Reproduction or multiplication) होता है लेकिन वह पोषक (Host) के सजीव या जीवित कोशा (Living cells) में ही होता है। विषाणुओं पर एन्टीबायोटिक दवाओं (Antibiotics) पर कोई असर नहीं होता है। विषाणुओं का रवाकरण (Crystallization) किया जा सकता है। विषाणुओं का आकार (Size) 20-350nm होता है | विषाणुओं की आकृति (Shape), दण्डाकार (Rod shaped) या गोलाकार (Spherical), टैडपोल (Tadpole) की तरह होती है। विषाणुओं के कृत्रिम माध्यम (Artificial medium) में नहीं उगाया (Grow) जा सकता है। अति सूक्ष्म होने के कारण इसको जीवाणु-छन्ना (Bacterial filter) द्वारा अलग नहीं किया जा सकता है। विषाणु इस छन्ना को पार कर जाता है।

के विषाणु अपने वाह्य वातावरण के परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होता है। विषाणु आनुवांशिक पदार्थ (Genetic material) डी० एन० ए० आर० एन० ए० में पुनरावृत्ति (Replication) की क्षमता होती है। इनमें उत्परिवर्तन (Mutation) होता है। विषाणु पूर्ण परोपजीवी (Obligate parasite) होते हैं तथा जीवित पोषक कोशा (Living host cell) के अन्दर प्रजनन (Reproduction = multiplication) करते हैं। विषाणुओं में अपने पोषक के चुनाव की विशेषता (Host specificity) होती है। विषाणुओं में एन्टीजेनिक गुण (Antigenic property) होती है।

विषाणु अकोशीय (Non-cellular) होते हैं। इन्हें रवाकृत (Crystallized) किया जा सकता है। इनमें प्रोटोप्लाज्म नहीं होता है। इनमें उपापचय (Metabolism) नहीं होता है। इनमें श्वसन (Respiration) नहीं होता है।

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