1929 में हुई लाहौर कांग्रेस कार्यकारिणी को यह अधिकार दिया गया था कि वह देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़े। इस आंदोलन में कर न अदा करना शामिल था। आंदोलन प्रारंभ करने का अधिकार गाँधीजी को प्रदान किया गया। गाँधीजी ने अपनी न्यूनतम मांगो वाली ।। सूत्रीय माँग–पत्र लार्ड इरविन के समक्ष प्रस्तुत किया, परन्तु इरविन ने इसे अनदेखा कर दिया। गाँधीजी ने सत्याग्रह के लिए सबसे पहले नमक कानून को ही चुना। नमक जो कि आम आवाम की आवश्यकता थी, और जो पानी को अलग करके बनाई जाती थी, जनता को उस पर भी कर अदा करना पड़ता था। गाँधीजी ने इस कर कानून को बीमार, विकलांगों को पीड़ित करने वाला, अत्यंत अमानवीय और अविवेकपूर्ण बताया।
लार्ड इरविन द्वारा संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं होने के बाद गाँधीजी ने 'डांडी यात्रा' के द्वारा'नमक बनाकर ‘नमक कानून' तोड़ने से आंदोलन का प्रारंभ करने का निश्चय किया। 12 मार्च 1930 को गाँधीजी अपने चुने हुए 79 साथियों के साथ ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लेने व सरकार की अवज्ञा करने व उसे चुनौती देने के लिए गुजरात प्रदेश के समुद्र तट पर डांडी नामक स्थान की ओर नमक कानून तोड़ने के लिए चल पड़े। सावरमती आश्रम से डांडी समुद्र तट की 200 मील की यात्रा पैदल चलकर 24 दिनों में तय की गई। सरदार पटेल आगे चले और उन्होंने गाँधीजी के आगमन के लिए जनता को तैयार किया। गाँधीजी और उनके दल का जगह-जगह भव्य स्वागत किया गया। समस्त संसार के राजनीतिज्ञों की आँखें इस समय गाँधीजी पर टिकी थीं। देश-विदेश के पत्रकार भी गाँधीजी के साथ थे। सुभाष चन्द्र बोस ने ‘‘गाँधीजी की डांडी यात्रा को नेपोलियन के पेरिस मार्च और मुसोलिनो के रोम मार्च के समान बताया। "
5 अप्रैल 1930 को गाँधीजी डांडी पहुँचे और 6 अप्रैल को प्रातः प्रार्थना के बाद गाँधीजी ने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। लुई फिशर ने इस घटना का वृतान्त इस प्रकार लिखा है-"5 अप्रैल की रात भर आश्रमवासियों ने प्रार्थना की और सब लोग गाँधीजी के साथ समुद्र तट पर गए। गाँधीजी ने समुद्र में गोता लगाया, किनारे पर बैठे तथा लहरों को छोड़ा हुआ नमक उठाया। इस प्रकार गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के उस कानून को तोड़ दिया जिसके अनुसार सरकारी ठेके के अलावा लिया हुआ नमक रखना गुनाह था। गाँधीजी द्वारा सरकार के कानून भंग करने व नमक बनाने के विचार की सरकार द्वारा तथा यूरोपियों द्वारा हँसी उड़ाई गई। एक समाचार पत्र ने व्यंग्य करते हुए लिखा कि ‘‘औपनिवेशिक स्वराज्य की प्राप्ति तक गाँधीजी समुद्र के पानी को बराबर उबाल सकते हैं।'