वसा चर्बीदार अम्ल व ग्लिसरीन का मिश्रण है। इसकी रचना भी उन्हीं तीन रासायनिक तत्त्वों अर्थात् कार्बोज, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से होती है, जिनमें कि कार्बोज की। किन्तु कार्बोज की अपेक्षा वसा में उनका अनुपात भिन्न होता है । वसा में नाइट्रोजन तत्त्व नहीं होता परिणामस्वरूप वसा में कार्बोज की अपेक्षा संघनित ईंधन अधिक होता है। यह कार्बोज की अपेक्षा 2/½ गुना अधिक शक्ति व गर्मी उत्पन्न करती है।
वसा हमारे भोजन का महत्त्वपूर्ण भाग है। भारतीयों के भोजन में 10-30% तक ऊर्जा वसा के द्वारा प्राप्त होती है | वसा एवं तेल प्राकृतिक रूप से जन्तु जगत एवं वनस्पति जगत में पाये जाते हैं। यह पेड़-पौधे के बीज, दूध, मक्खन, कॉड लीवर ऑयल, मिलता है। यकृत आदि में बहुतायत से
वसा ऊर्जा का संघनित रूप है। एक ग्राम वसा से 9 कैलोरी ऊर्जा मिलती है जबकि कार्बोज एवं प्रोटीन की इतनी ही मात्रा से 4 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। यह शरीर में वसीय ऊतकों (Adipose tissues) के रूप में जमा हो जाती है। जब शरीर को अन्य किसी साधन से ऊर्जा नहीं मिलती अर्थात् भोजन नहीं मिलता, शरीर में जमा ग्लाइकोजन भी समाप्त हो जाता है तब इन वसीय ऊतकों द्वारा ऊर्जा मिलती है। भोजन में कार्बोज तथा प्रोटीन की मात्रा अधिक होने पर वे भी शरीर में वसीय तन्तुओं के रूप में जमा हो जाते हैं। इस प्रकार वसा ऊर्जा संग्रह का उत्तम साधन है। वसा शरीर में त्वचा के नीचे वसीय ऊतकों के रूप में जमा रहता है। यह एक गद्दी (Cushion) की तरह कार्य करता है। यह शरीर को चोट, सर्दी, गर्मी, आघात, रगड़ आदि से सुरक्षा प्रदान करता है। वसा हमारे शरीर के तापक्रम को नियमित एवं नियन्त्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। त्वचा के नीचे जो वसा की पर्त होती है वह हमारे शरीर में ताप अवरोधक (Insulator) या ऊष्मा कुचालक होने का काम करती है। इस अवरोधक के कारण शरीर तापक्रम नियमित रहता है।