वह रासायनिक अभिक्रिया जिसमें एक बड़ा कार्बनिक अणु इंजाइम की क्रिया द्वारा छोटे-छोटे सरल अणु में बदल जाते हैं, किण्वन कहा जाता है। इस क्रिया द्वारा छोआ, ग्लूकोज तथा स्टार्चयुक्त पदार्थों से इथाइल अल्कोहल का उत्पादन किया जाता है।
दूध का फट जाना, दूध से दही बनना, माँस का सड़ जाना, सिड़के का बनना, आँतों में भोजन की पाचन क्रिया फलों के रस का पड़े-पड़े खट्टा और खराब हो जाना।
अल्कोहल बनाने का तरीका बहुत सरल है। गन्ने के रस को प्रकृति में कुछ दिनों तक खुली अवस्था में रख देने से इसमें स्वतः रासायनिक क्रियाएँ प्रारम्भ हो जाती हैं और यह धीरे-धीरे विघटित होने लगता है। कुछ समय के बाद ही गैस के बुलबुले उठने लगते हैं और अधिक मात्रा में बनने की वजह से समूचे द्रव में आग उत्पन्न होने लगता है, जैसे वह खौल रहा हो। इस क्रिया की वजह से ही इस विधि को किण्वन कहते हैं। किण्वन ग्रीक शब्द Fervere से बना है जिसका अर्थ है खोलना।
किण्वन का वैज्ञानिक अध्ययन सबसे पहले फ्रांसीसी वैज्ञानिक लूई पास्चर ने किया। इन्होंने इसे जीवाणुओं द्वारा होने वाली क्रिया बतलाया। इनका कहना है कि इस्ट ( यीस्ट Yeast) एक तरह के जीवाणु होते हैं और जो गन्ने के रस में पैदा नहीं होते, बल्कि ये जीवाणु वनस्पति जगत या जन्तु जगत से प्राप्त होते हैं। जिन जीवाणुओं की वजह से किण्वन होता है उसे किण्वन कहते हैं।
प्रत्येक किण्वन के शरीर में एक संकुल नाइट्रोजनीय पड़ पदार्थ होता है। इसे एन्जाइम कहते हैं। एन्जाइम एक तरह से उत्प्रेरक का काम करता है। अब यह सिद्ध हो चुका है कि किण्वन एन्जाइमों की उपस्थिति में ही सम्भव है।
अतः किण्वन एन्जाइम के उत्प्रेरण से पैदा होने वाली एक रासायनिक क्रिया है। ये एन्जाइम सभी जीवाणुओं में वर्तमान रहते हैं।
किण्वन उष्माक्षेपी (Exothemic) प्रतिकिक्रया होती है। प्रतिक्रिया के समय एक या अधिक गैस जैसे CO, N,, CH,, आदि निकलती है।