भारत में कारखानों की स्थापना (Establishment Of Factory In India) :
औपनिवेशिक काल में भारत में उस प्रकार की औद्योगिक क्रांति नहीं आई जैसी इंगलैंड में आई तथापि 19वीं शताब्दी के 50-60 के दशक में भारत में भी कारखाने स्थापित किए गए।
पहला कारखाना 1854 में बंबई में खुला। यह कपड़ा मिल था। वहाँ पारसी, गुजराती और बोहरा समुदाय के लोग सूती धागा और कपड़ा बनाने के उद्योग में लगे थे। उनकी सहायता से पारसी व्यवसायी कावसजी नानाजी दाभार ने पहली कपड़ा मिल लगाई।
इस समय से वस्त्र उद्योग आरंभ हुआ। 1862 तक बंबई में चार कपड़ा मिलें खुलीं। धीरे-धीरे अहमदाबाद और कानपुर में भी कपड़ा मिलें स्थापित की गईं। 1860 में कानपुर में एल्गिन मिल तथा 1874 में मद्रास में पहली कपड़ा मिल खुली।
बंबई, अहमदाबाद और कानपुर वस्त्र उद्योग के प्रमुख केंद्र बन गए। इसका प्रमुख कारण था इन स्थानों पर कच्चे माल और श्रमिकों की आपूर्ति की सुविधा । ये तीनों केंद्र आवागमन के साधनों द्वारा जुड़े हुए थे तथा मिल खोलने के लिए पर्याप्त पूँजी उपलब्ध थी।
धीरे-धीरे अन्य स्थानों में भी कपड़ा मिलें खुलीं। 1880 से 1895 तक सूती मिलों की संख्या 39 से अधिक हो गईं। 1905 तक भारत में करीब 206 कपड़ा मिलें थीं और इनमें दो लाख श्रमिक कार्यरत थे। अधिकांश मिलों में पारसी व्यवसायी लगे हुए थे। इसी समय जूट मिलें भी खुलीं। पहली जूट मिल बंगाल में रिशरा नामक स्थान में 1859 में खोली गई।
वस्त्र उद्योग के समान जूट उद्योग का भी तेजी से विकास हुआ। इस उद्योग का विकास पैकिंग सामग्री – जूट, बोरा, चाट इत्यादि की आवश्यकता के लिए हुआ। जूट उद्योग का विकास सबसे अधिक तत्कालीन बंगाल के हुगली जिला में हुआ; क्योंकि वहाँ पटसन बहुत अधिक उपजाया जाता था।
1901 तक बंगाल में 36 से अधिक पटसन कारखाने कार्यरत थे जिनमें एक लाख से भी अधिक श्रमिक काम करते थे। इन मिलों में भारतीय उद्योगपतियों ने पूँजी लगाई।