हिटलर का पूरा नाम एडोल्फ हिटलर था। उसके पिता गरीब थे. इसलिए बचपन में उसे उचित शिक्षा नहीं मिल सकी। पिता की मृत्यु के बाद वह वियना में एक शिल्पी का काम करने लगा।
1912 में वह म्यूनिख चला गया और चित्रकारी करके अपना जीवन निर्वाह करने लगा। इसी समय प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया।
वह जर्मन सेना में भर्ती हो गया। युद्ध में उसने अपूर्व योग्यता दिखलायी, जिसके लिए उसे “सावरन फ्रांस” भी प्राप्त हुआ।
युद्ध में घायल होकर जिस समय वह पामरेनिया के अस्पताल में पड़ा हुआ था, उसी समय उसे विराम-सन्धि की सूचना मिली।
यह सुनकर बड़ा आहत हुआ। उसने राजनीति में प्रवेश करने का निश्चय किया।
हिटलर की सफलता का प्रमुख कारण स्वयं हिटलर का व्यक्तित्व था। वह एक बहुत अच्छा वक्ता और लेखक भी था। उसमें बड़ी-बड़ी भीड़ को अपने
भाषण के जादू से मुग्ध कर सकने की क्षमता थी। नेता (फ्यूरर) बनने के सभी गुण उसमें मौजूद थे। वह अपने कार्यों को संगठित रूप से करता था।
कुछ साथियों के साथ वह जर्मन वर्कर्स पार्टी का एक सदस्य बन गया और उस पार्टी को संगठित करने का संकल्प लिया।
हिटलर के प्रवेश से उस पार्टी की प्रगति होने लगी। जर्मन वर्कर्स पार्टी का नाम बदलकर राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी रखा गया।
वह स्वयं उसका नेता बना। उसने पार्टी के कार्यक्रम जनता के सामने रखा। उसके जोशीले भाषण और संगठन के तरीके से नात्सी पार्टी का उत्थान होने लगा।
जर्मनी की निकम्मी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का झंडा खड़ा किया। परन्तु हिटलर का यह प्रयास असफल रहा।
उसे पकड़ लिया गया और उसे पाँच वर्ष की सजा हो गई। जेल में उसने विश्वविख्यात पुस्तक “मैन कैम्प (मेरा संघर्ष) लिखी जो आगे चलकर नात्सियों का बाइबिल बन गयी।
1924 में वह जेल से छुटकर बाहर आया। 1925 से 1929 की अवधि में उसने अपनी पार्टी को संगठित किया।
1933 में हिटलर जर्मनी का प्रधानमंत्री बना। 2 अगस्त, 1934 को राष्ट्रपति की मृत्यु के बाद वह राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ही बन गया।
1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया और 1945 तक चलता रहा। 1 मई, 1945 को हिटलर ने आत्महत्या कर ली।