छायावाद की पाँच विशेषताएँ निम्न हैं —
- वैयक्तिकता : 'छायावादी काव्य रचना में काव्य का नायक खुद कवि होता है। कवि हर्ष, विषाद, प्रेम, दुख-सुख खुद पर आरोपित करता है। पंत, निराला, महादेवी वर्मा इसी धारा के कवि थे। इनकी वैयक्तिकता आत्मकेन्द्रित होकर भी व्यापक होता है।
- देशप्रेम : छायावादी कवि अपने काव्य में देशप्रेम को भी दर्शाया है। पर्यावरणीय संकट से मुक्ति एवं प्राकृतिक विपदाओं से पीड़ितजन देश के लिए इन कवियों के काव्य में निहित है। वे इस धरती को शांतिमय और खुशहाल देखना चाहते हैं।
जिसका चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है?
- प्रकृति प्रेम : छायावाद कवि प्रकृति प्रेमी हैं। वे प्रकृति की सत्ता को स्थापित करना चाहते हैं। प्रकृति का रहस्य उनमें भय नहीं आकर्षण पैदा करता है। प्रकृति उनके व्यक्तित्व को खुला एवं स्वच्छंद वातावरण देती है।
प्रथम रश्मि का आना रंगिणी, तूने कैसे पहचाना।
जीर्ण बाहु है, शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक आधीर,
ऐ विप्लव के वीर।
- नारी भावना : छायावादी कवियों में नारी के प्रति श्रद्धा, उनकी स्वतंत्रता के लोकतांत्रिक बोध की संपन्नता भी है।
तुम भूल गए पुरुषत्व मोह में कुछ सत्ता है, नारी की।
समरसता है, संबंध बनी, अधिकार और अधिकारी की।
- सौन्दर्य का चित्रण एवं प्रेम की अभिव्यक्ति : छायावादी कवियों में छंद गठन अभूतपूर्व है।
इनकी शब्द योजना में अधिक प्रगाढ़ता, मधुमयता, नाट्युक्त अतुलनीय विविधता सन्धि, समास, विविध जाति एवं ध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग है। अनुप्रास युक्त संगीतमयी, कविताएँ पठनीय है। आध्यात्मिक विश्वास, कर्मवाद की प्रखरता से पूर्ण कविताएँ।