एक बार बच्चे लिखना सीख लें, इसके बाद उनकी प्रगति बहुत कुछ अध्यापक की प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करती है। हमारे देश के बहुत से स्कूलों में अध्यापक की प्रतिक्रिया के तौर पर बच्चे को सिर्फ अपनी व्याकरण या हिज्जे की गलतियों के सुधार मिलते हैं।
बच्चों की कापियाँ लाल स्याही से किये गये सुधारों से रंगी रहती हैं।
दूसरी तरफ बच्चा हर चीज ठीक लिखकर लाये तो अध्यापक केवल सही का चिन्ह बनाकर दस्तखत कर देता है।
ये दोनों ही प्रतिक्रियाएँ अधूरी व हानिप्रद हैं। बच्चों की गलतियाँ सुधारने या सही का चिन्ह लगाने के अलावा अध्यापक को बच्चे के लेखन की प्रतिक्रिया में कुछ न कुछ स्वयं लिखना चाहिए।
उसे पढ़कर तथा आपको किसी बात की याद आई । यदि बच्चे का लिखा अच्छा है तो क्या ? इस विषय पर और कुछ लिखा जा सकता था | क्या किसी ने एकदम भिन्न ढंग से लिखा है ? लेखन पर अपनी प्रतिक्रिया देने के सैकड़ों तरीके हो सकते हैं।
जिस तरह बच्चे से बात करते समय आप उसकी बात को स्वीकार लेते हैं, इसी तरह बच्चे का लेखन पढ़कर आपको उसे विस्तार देना है।
बच्चे की कापी पर एक दो वाक्य लिखकर आप उसे इस बात का प्रमाण देंगे कि आप लेखन को एक यांत्रिक क्रिया नहीं, एक तरह का संवाद मानते हैं।
आप भले व्याकरण का अभ्यास देख रहे हों (और यह तो आपको अक्सर करना होगा)। आप कोई न कोई दिलचस्प और व्यक्तिगत बात संक्षेप में लिख सकते हैं।
यह बात बच्चे के लिए आपके हस्ताक्षर से ज्यादा महत्वपूर्ण होगी ।