पर्यावरण अध्यापन करने वाली एक अध्यापिका आदिवासी बाहुल्य बोरिद गाँव की एक प्राथमिक शाला का भ्रमण किया, जिसमें पर्यावरण विषय के अन्तर्गत भ्रमण द्वारा गाँव के जलस्रोत के बारे में बच्चों को बताया जा रहा था । भ्रमण के दौरान आस-पास की वनस्पति, पेड़-पौधे, उनका उपयोग कब कैसे होता है, इस पर अध्यापिका अपने बच्चों को बता रही थी।
बोरिद गाँव छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले से 35 किमी. दूर सिरपुर के निकट है। यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है, जहाँ उनकी शिक्षिका भ्रमण के दौरान जलस्रोत की जानकारी दे रही थी। रास्ते में ही तालाब का, कुछ दूर जाने के बाद खेत में ट्यूब पंप से भी पानी खेतों में सिंचाई के लिए जा रहा था । कुछ दूर जाने पर झरना पड़ा, जंगल में पेड़ सरई के खैर (कत्था), महुआ आदि के कई पेड़ मिले। बच्चे स्वयं बताते जा रहे थे कि इस पेड़ से दोनापत्तल बनाते हैं, वे स्वयं कई पेड़ों को देखकर उसके क्या-क्या उपयोग करते हैं, आपस में शिक्षिका भी उनसे चर्चा कर रही थी। यह जानकारी वास्तव में बहुत ही अच्छी थी । पर्यावरण को भ्रमण विधि से ही अधिक स्पष्ट किया जा सकता है।
कुछ छोटे बच्चे आपस में चर्चा करते थे कि बगुला भैंस की सवारी करता है। वह भैंस के जूँ भी खाता है। कुछ अमरबेल को लाकर उसके बारे में बताने लगे। सभी बच्चे शिक्षिका से बिल्कुल घुल-मिल गये । उनके मन में किसी प्रकार का भय नहीं था और अपनी स्थानीय भाषा में भी बहुत सी जानकारी आपस में आदान-प्रदान कर रहे थे । वास्तविक पर्यावरणीय अध्ययन यही है।
प्रकृति के समीप जाकर स्वयं समझ अधिक स्थायी बनती है। यदि आप चाहें, तो बच्चों से रोचक गतिविधयाँ भी करवा सकते हैं। नाटक, चुटकुले, कहानी, जो खेल-खेल में पर्यावरण पर आधारित हो। इससे भी समझ में विकास होगा। आस-पास की वनस्पतियों के नाम और उनके किस भाग से औषधि प्राप्त होती है और उसका किस बीमारी में उपयोग किया जाता है।