संरक्षण नीति पर एक निबंध लिखें। Rashtriy Sanrakshan Niti Per Ek Nibandh Likhen.
116 views
0 Votes
0 Votes

 संरक्षण नीति पर एक निबंध लिखें। Rashtriy Sanrakshan Niti Per Ek Nibandh Likhen.

2 Answers

0 Votes
0 Votes
 
Best answer

Ans. संविधान के अनुच्छेद 48-क में संरक्षण को नीति निर्देशक तत्वों के रूप में सम्मिलित किया गया है तथा यह अभिलिखित किया गया है कि, “राज्य देश के पर्यावरण की सुरक्षा तथा उनमें सुधार करने का और वन एवं वन्य जीवों की रक्षा का प्रयास करेगा।" इसी प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 51-क में पर्यावरण संरक्षण को नागरिकों का मूल कर्तव्य मानते हुए यह प्रावधान किया गया है कि, “भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उनका संवर्द्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें। "

पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अब तक जो अधिनियम पारित किये गये हैं उनमें 'जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974' 'वायु ( प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981', पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986', 'भारतीय वन अधिनियम, 1927', वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972' प्रमुख हैं। 6

जल ( प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 : यह अधिनियम जल प्रदूषित करने वाले के लिए दण्ड निर्धारित करता है और केन्द्र एवं राज्य स्तर पर जल प्रदूषण के नियंत्रण और उसके बचाव के लिए एक प्रशासनिक तंत्र की स्थापना करता है जिसे जल प्रदूषण बोर्ड कहते हैं। यह अधिनियम इस दृष्टि से बहुत विस्तृत है कि इसमें सरिताएँ, जल प्रवाह मार्ग, अन्तर्देशीय जल, अन्तर्भूमिक जल, समुद्र, ज्वारीय जल को राज्य के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत देता है। राज्य एवं केन्द्रीय बोर्ड में व्यापक प्रतिनिधित्व होता है और उन्हें परामर्श देने के पूरे-पूरे अधिकार दिये गये हैं तथा जल प्रदूषण के निवारण एवं नियंत्रण अथवा उसमें कमी के लिए तकनीकी सहायता को समन्वित करके प्रदान करने के लिए अधिकृत किया गया है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इन बोर्डों को देश में जल प्रदूषण की दशा पर दृष्टि रखने और प्रदूषण के अनुज्ञेय एवं अनुमत्य और अनुमात्य स्तर के मानव के निर्धारण का कार्य भी सौंपा गया है।

जल अधिनियम विषैले, हानिकारक अथवा प्रदूषित करने वाले पदार्थों को नदियों एवं कुओं में फेंके जाने को निषिद्ध करता है और हर कार्य जो नदियों के जल के उचित प्रवाह में बाधा पहुँचाता है उसे रोकता है। यह अधिनियम यह प्रतिबंध भी लगाता है कि मल, जल या औद्योगिक प्रवाह को नदियों या कुओं में गिराने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी। बोर्डों कोप्रदूषणकर्ताओं को ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने पर दण्डित करने का अधिकार प्राप्त है। वायु ( प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 : यह अधिनियम मुख्य रूप से मोटरगाड़ियों और औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाले धुएँ को नियमित और नियंत्रित करने के लिए पारित किया गया था। वायु प्रदूषण के बचाव और नियंत्रण के लिए प्रशासनिक बोड़ों का गठन किया गया है। धारा 19 के अन्तर्गत केन्द्रीय बोर्ड को मुख्य रूप से राज्य के बोड़ों की गतिविधियों को समन्वित करने के लिए अधिकार दिए गए हैं। राज्य के बोर्ड से विचार-विमर्श करके राज्य सरकार राज्य में स्थित किसी क्षेत्र को 'वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र' के रूप में घोषित कर सकती है और स्वीकृत जलावन के स्थान पर किसी ऐसे जलावन को निषिद्ध करती है जिसके कारण वायु प्रदूषित होती है। इसके अतिरिक्त बोर्ड से अनुमति लिए बिना कोई ऐसा औद्योगिक संयंत्र संचालित नहीं होगा जो उन उद्योगों से संबद्ध है जिनका वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र की सूची में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 : पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 23 मई, 1986 ई० को संसद द्वारा पारित किया गया। यह अधिनियम 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन से संबंधित है और संविधान के अनुच्छेद 253 पर आधारित है। इस अधिनियम की विशेषता के कारण केन्द्र सरकार ने पर्यावरणीय प्रदूषण से बचाव, उस पर नियंत्रण और उसमें कमी के लिए आवश्यक अधिकारों से स्वयं को लैस कर लिया है। इन अधिकारों में राज्यों द्वारा देशव्यापी कार्यक्रम के नियोजन और कार्यान्वयन का समन्वय, पर्यावरणीय गुणवता मानकों का निर्धारण, विशेष रूप से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन तथा विमुक्ति का नियमन और उद्योगों की स्थिति पर रोक लगाना आदि सम्मिलित है। ये माँगे गए अधिकार वास्तव में बहुत विस्तृत हैं, अधिकार में खतरनाक पदार्थों का संभालना, पर्यावरणीय दुर्घटनाओं से बचाव, शोध कार्य, प्रदूषित करने वाली इकाइयों का निरीक्षण, प्रयोगशालाओं की स्थापना, सूचनाओं का प्रचार व प्रसार आदि इसमें सम्मिलित हैं। इस अधिनियम के अन्तर्गत विभिन्न प्रशासनिक कार्य प्रणालियों और संरचनाओं पर विचार किया जाता है। यदि अधिनियम मूल रूप से कार्यान्वित कर दिया जाये तो यह पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को श्रेष्ठ मंत्रालय में बदल देगा जो औद्योगिक एवं अन्य विकासीय क्रियाओं के सम्पूर्ण प्रभाव क्षेत्र को नियंत्रित करने में सफल होगा। इस अधिनियम को लागू करने का भी रवैया सरकार द्वारा पारित पर्यावरणीय अधिनियमों का प्रदर्शन मात्र ही होगा। भारतीय वन अधिनियम, 1927 : भारतीय वन अधिनियम, 1927 एक संविधान पूर्व अधिनियम है, तथा यह वनों, वन-उपजों के अभिवहन और इमारती लकड़ी एवं अन्य उपजों पर उद्ग्रहणीय शुल्क से संबंधित विधियों के समेकन हेतु लागू किया गया है।

वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : आवास के सर्वनाश के कारण ही वन्य प्राणियों को सर्वाधिक गम्भीर संकट का सामना करना पड़ता है। कृषि उद्योग एवं नगरीकरण का निस्तारण आदि इस सर्वनाश का कारण है। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम वन्य जीव सुरक्षा और संकटापन्न जीव प्रजातियों की सुरक्षा को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम संकटापन्न एवं दुर्लभ जातियों के व्यापार का निषेध करता है । वन्य जीव अधिनियम को सारे राज्यों ने अपनाया (केवल जम्मू कश्मीर को छोड़कर) जिनका अपना अधिनियम है। केन्द्र राज्यों को-

1. प्रबंधन को सशक्त करने और राष्ट्रीय उद्यानों तथा मृगवनों की ढाँचागत सुविधाओं की सुरक्षा करने के लिए;

2. वन्य जीवों की सुरक्षा, अनाधिकृत शिकार के नियंत्रण और वन्य प्राणी उत्पादों के गैर-कानूनी व्यापार को रोकने के लिए

3. वन्य प्राणियों की संकटापन्न जातियों के बन्दी स्थिति में प्रजनन,

4. वन्य जीव शिक्षा और उसकी व्याख्या एवं

5. चुने हुए चिड़ियाघरों के विकास के लिए वित्तीय सहायता देता है।

0 Votes
0 Votes

Ans. संविधान के अनुच्छेद 48-क में संरक्षण को नीति निर्देशक तत्वों के रूप में सम्मिलित किया गया है तथा यह अभिलिखित किया गया है कि, “राज्य देश के पर्यावरण की सुरक्षा तथा उनमें सुधार करने का और वन एवं वन्य जीवों की रक्षा का प्रयास करेगा।"

इसी प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 51-क में पर्यावरण संरक्षण को नागरिकों का मूल कर्तव्य मानते हुए यह प्रावधान किया गया है कि, “भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उनका संवर्द्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें। "

पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अब तक जो अधिनियम पारित किये गये हैं उनमें 'जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974' 'वायु ( प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981', पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986', 'भारतीय वन अधिनियम, 1927', वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972' प्रमुख हैं। 6

जल ( प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 : यह अधिनियम जल प्रदूषित करने वाले के लिए दण्ड निर्धारित करता है और केन्द्र एवं राज्य स्तर पर जल प्रदूषण के नियंत्रण और उसके बचाव के लिए एक प्रशासनिक तंत्र की स्थापना करता है जिसे जल प्रदूषण बोर्ड कहते हैं। यह अधिनियम इस दृष्टि से बहुत विस्तृत है कि इसमें सरिताएँ, जल प्रवाह मार्ग, अन्तर्देशीय जल, अन्तर्भूमिक जल, समुद्र, ज्वारीय जल को राज्य के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत देता है। राज्य एवं केन्द्रीय बोर्ड में व्यापक प्रतिनिधित्व होता है और उन्हें परामर्श देने के पूरे-पूरे अधिकार दिये गये हैं तथा जल प्रदूषण के निवारण एवं नियंत्रण अथवा उसमें कमी के लिए तकनीकी सहायता को समन्वित करके प्रदान करने के लिए अधिकृत किया गया है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इन बोर्डों को देश में जल प्रदूषण की दशा पर दृष्टि रखने और प्रदूषण के अनुज्ञेय एवं अनुमत्य और अनुमात्य स्तर के मानव के निर्धारण का कार्य भी सौंपा गया है।

जल अधिनियम विषैले, हानिकारक अथवा प्रदूषित करने वाले पदार्थों को नदियों एवं कुओं में फेंके जाने को निषिद्ध करता है और हर कार्य जो नदियों के जल के उचित प्रवाह में बाधा पहुँचाता है उसे रोकता है। यह अधिनियम यह प्रतिबंध भी लगाता है कि मल, जल या औद्योगिक प्रवाह को नदियों या कुओं में गिराने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी। बोर्डों कोप्रदूषणकर्ताओं को ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने पर दण्डित करने का अधिकार प्राप्त है। वायु ( प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 : यह अधिनियम मुख्य रूप से मोटरगाड़ियों और औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाले धुएँ को नियमित और नियंत्रित करने के लिए पारित किया गया था। वायु प्रदूषण के बचाव और नियंत्रण के लिए प्रशासनिक बोड़ों का गठन किया गया है। धारा 19 के अन्तर्गत केन्द्रीय बोर्ड को मुख्य रूप से राज्य के बोड़ों की गतिविधियों को समन्वित करने के लिए अधिकार दिए गए हैं। राज्य के बोर्ड से विचार-विमर्श करके राज्य सरकार राज्य में स्थित किसी क्षेत्र को 'वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र' के रूप में घोषित कर सकती है और स्वीकृत जलावन के स्थान पर किसी ऐसे जलावन को निषिद्ध करती है जिसके कारण वायु प्रदूषित होती है। इसके अतिरिक्त बोर्ड से अनुमति लिए बिना कोई ऐसा औद्योगिक संयंत्र संचालित नहीं होगा जो उन उद्योगों से संबद्ध है जिनका वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र की सूची में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 : पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 23 मई, 1986 ई० को संसद द्वारा पारित किया गया। यह अधिनियम 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन से संबंधित है और संविधान के अनुच्छेद 253 पर आधारित है। इस अधिनियम की विशेषता के कारण केन्द्र सरकार ने पर्यावरणीय प्रदूषण से बचाव, उस पर नियंत्रण और उसमें कमी के लिए आवश्यक अधिकारों से स्वयं को लैस कर लिया है। इन अधिकारों में राज्यों द्वारा देशव्यापी कार्यक्रम के नियोजन और कार्यान्वयन का समन्वय, पर्यावरणीय गुणवता मानकों का निर्धारण, विशेष रूप से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन तथा विमुक्ति का नियमन और उद्योगों की स्थिति पर रोक लगाना आदि सम्मिलित है। ये माँगे गए अधिकार वास्तव में बहुत विस्तृत हैं, अधिकार में खतरनाक पदार्थों का संभालना, पर्यावरणीय दुर्घटनाओं से बचाव, शोध कार्य, प्रदूषित करने वाली इकाइयों का निरीक्षण, प्रयोगशालाओं की स्थापना, सूचनाओं का प्रचार व प्रसार आदि इसमें सम्मिलित हैं। इस अधिनियम के अन्तर्गत विभिन्न प्रशासनिक कार्य प्रणालियों और संरचनाओं पर विचार किया जाता है। यदि अधिनियम मूल रूप से कार्यान्वित कर दिया जाये तो यह पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को श्रेष्ठ मंत्रालय में बदल देगा जो औद्योगिक एवं अन्य विकासीय क्रियाओं के सम्पूर्ण प्रभाव क्षेत्र को नियंत्रित करने में सफल होगा। इस अधिनियम को लागू करने का भी रवैया सरकार द्वारा पारित पर्यावरणीय अधिनियमों का प्रदर्शन मात्र ही होगा।

भारतीय वन अधिनियम, 1927 : भारतीय वन अधिनियम, 1927 एक संविधान पूर्व अधिनियम है, तथा यह वनों, वन-उपजों के अभिवहन और इमारती लकड़ी एवं अन्य उपजों पर उद्ग्रहणीय शुल्क से संबंधित विधियों के समेकन हेतु लागू किया गया है।

वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : आवास के सर्वनाश के कारण ही वन्य प्राणियों को सर्वाधिक गम्भीर संकट का सामना करना पड़ता है। कृषि उद्योग एवं नगरीकरण का निस्तारण आदि इस सर्वनाश का कारण है। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम वन्य जीव सुरक्षा और संकटापन्न जीव प्रजातियों की सुरक्षा को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम संकटापन्न एवं दुर्लभ जातियों के व्यापार का निषेध करता है । वन्य जीव अधिनियम को सारे राज्यों ने अपनाया (केवल जम्मू कश्मीर को छोड़कर) जिनका अपना अधिनियम है। केन्द्र राज्यों को-

1. प्रबंधन को सशक्त करने और राष्ट्रीय उद्यानों तथा मृगवनों की ढाँचागत सुविधाओं की सुरक्षा करने के लिए;

2. वन्य जीवों की सुरक्षा, अनाधिकृत शिकार के नियंत्रण और वन्य प्राणी उत्पादों के गैर-कानूनी व्यापार को रोकने के लिए

3. वन्य प्राणियों की संकटापन्न जातियों के बन्दी स्थिति में प्रजनन,

4. वन्य जीव शिक्षा और उसकी व्याख्या एवं

5. चुने हुए चिड़ियाघरों के विकास के लिए वित्तीय सहायता देता है।

RELATED DOUBTS

Peddia is an Online Question and Answer Website, That Helps You To Prepare India's All States Boards & Competitive Exams Like IIT-JEE, NEET, AIIMS, AIPMT, SSC, BANKING, BSEB, UP Board, RBSE, HPBOSE, MPBSE, CBSE & Other General Exams.
If You Have Any Query/Suggestion Regarding This Website or Post, Please Contact Us On : [email protected]

CATEGORIES