गरीबी के कारण
1. पूँजी का अभाव - भारत, विशेषकर बिहार में गरीबी के निम्नलिखित कारण हैं। बिहार में गरीबी का मुख्य कारण पूँजी का अभाव है। यहाँ पूँजी के अभाव के दो कारण हैं- (क) प्रतिव्यक्ति उपलब्ध पूँजी की न्यून मात्रा (ख) पूँजी निर्माण की निम्न दर। यहाँ विकसित राज्यों की तुलना में प्रति व्यक्ति पूँजी बहुत ही कम है।
2. जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि बिहार में जनसंख्या की वृद्धि काफी तीव्र गति से हो रही है। यहाँ जनसंख्या विस्फोट की समस्या है। 1971 से 2.5 प्रतिशत की वार्षिक दर से जनसंख्या बढ़ रही है जिससे बेरोजगारी की समस्या में काफी वृद्धि हुई है। जनसंख्या विस्फोट की स्थिति गरीबी के लिए जिम्मेवार है।
3. प्राकृतिक साधनों का विकास प्रकृति ने बिहार में प्राकृतिक साधनों को प्रदान करने में काफी चुस्ती दिखलायी है। इन साधनों का पूर्ण विकास नहीं हुआ है, जिसके कारण यहाँ के लोग गरीब हैं।
4. औद्योगीकरण का अभाव - बिहार में उद्योग धन्धों का काफी अभाव है। राष्ट्रीय आय में उद्योगों का कम योगदान है। अतः औद्योगीकरण की कमी के कारण यहाँ के लोग गरीब हैं।
5. कृषि की प्रधानता बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है अतः यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर आश्रित है। अभी 76 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित है फिर भी यह अपनी खाद्यान्न सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद अनाजों का व्यापार नहीं करता है। अत: कृषि पर जनसंख्या की अत्यधिक निर्भरता गरीबी का परिचायक है।
6. यातायात एवं संवाद वाहन के साधनों का अभाव यातायात की दृष्टि से बिहार काफी पीछे है। यहाँ यातायात के साधनों का पूर्ण विकास नहीं हो पाया है। बिहार में कच्ची सड़कों को मिलाकर भी वह अनुपात कम है अतः जबतक इनका समुचित विकास नहीं होगा तबतक गरीबी बिहार की अर्थ-व्यवस्था में मौजूद रहेगी।
7. निम्न जीवन स्तर लोगों का जीवन स्तर काफी निम्न है। क्योंकि बिहार में लोगों की प्रति व्यक्ति औसत आय अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है। बिहार में प्रति व्यक्ति खाद्यानों का औसत उपभोग 1600 कैलोरी के लगभग है। परन्तु एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए भोजन में कैलोरी की आवश्यकता होती है। -
8. बेरोजगारी यह गरीबी का एक प्रमुख कारण है। बिहार में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि तथा सहायक उद्योग-धन्धों के अभाव के कारण बेरोजगारी की भयंकर समस्या है। बेरोजगारी के परिणामस्वरूप लोगों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम होती है, जिससे यहाँ गरीबी व्यापक पैमाने पर मौजूद है तथा लोगों का जीवन स्तर काफी निम्न है।
गरीबी दूर करने के लिए अनेक विशिष्ट कार्यक्रम चलाए गए हैं। इनमें विशेष उल्लेखनीय ये हैं–स्वर्ण जयन्ती ग्राम समृद्धि योजना, स्वर्ण जयन्ती स्वरोजगार योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, रोजगार बीमा स्कीम, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना और स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना। इनका संक्षिप्त उल्लेख बेरोजगारी के अध्याय में पहले किया जा चुका है। वैसे तो इन कार्यक्रमों की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं, लेकिन मोटे तौर से इनके दो प्रमुख प्रयोजन हैं। एक तो ये गरीब व्यक्तियों को रोजगार दिलाने की व्यवस्था करते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र के कमजोर वर्गों को। दूसरे, ये आवश्यक साज-सामान सुविधाएँ, प्रशिक्षण आदि देने के सम्बन्ध में समुचित प्रबन्ध करके गरीबों की आय बढ़ाने में मदद देते हैं इस प्रकार आर्थिक विकास की दर में तेजी लाने के अतिरिक्त सरकार विशेष कार्यक्रम अपनाकर गरीबी दूर करने का प्रयास कर रही है जो कि एक सही दृष्टिकोण है।
एक अन्य प्रकार के उपायों का उद्देश्य निम्न आय वर्ग के लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा कराने में सहयोग देना है, ताकि उनका जीवन स्तर ऊपर उठ सके। आय के अतिरिक्त, लोगों का जीवन-स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें कितनी सार्वजनिक सुविधाएँ और सेवाएँ उपलब्ध होती हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के प्रथम वर्ष में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (Minimum Needs Programme) शुरू किया। इसका उद्देश्य गरीब लोगों के लिए आधारमूलक सुविधाएँ उपलब्ध करा कर उनके निर्वाह- स्तर को ऊपर उठाना है और विकास के सम्बन्ध में क्षेत्रीय विषमताओं को कम करना है। शुरू में इस कार्यक्रम में शामिल की गई सुविधाएँ थोड़ी थीं। लेकिन आगे चलकर छठी और सातवीं योजना में नई मदें जोड़ कर इस कार्यक्रम को अधिक व्यापक बना दिया गया। इसमें जिन सुविधाओं और सेवाओं की व्यवस्था है, वे इस प्रकार हैं स्वच्छ पेयजल, चिकित्सा और स्वास्थ्य - रक्षा, प्राथमिक शिक्षा, प्रौढ शिक्षा, ग्रामीण भवन निर्माण, ग्रामीण सड़कें, ग्रामीण बिजलीकरण, शहरी इलाकों की गन्दी बस्तियों का वातावरण सम्बन्धी सुधार, पोषक आहार एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली। - "
न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम को जहाँ एक ओर नई मदें शामिल करके व्यापक बनाने का प्रयास किया गया, वहाँ दूसरी ओर इसके संचालन के लिए अधिकाधिक धनराशि की व्यवस्था की गई। उदाहरण के लिए, पाँचवीं योजना में इसके लिए 2607 करोड़ रुपये का प्रबन्ध किया गया जिसे बढ़ाकर छठी योजना में 5807 करोड़ रुपये तथा सातवीं योजना में 11,543 करोड़ रुपये कर दिया गया। इस प्रकार निर्धारित व्यय - राशि में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाती रही है। वास्तव में निर्धारित व्यय - राशि से खर्च कहीं अधिक किया गया है। उदाहरणतया छठी योजना की अवधि में इस कार्यक्रम पर 7035 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि इसके लिए योजना में कुल 5807 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी। स्पष्ट है कि सरकार इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम को अधिक प्रभावपूर्ण बनाने में प्रयत्नशील है।
गरीबों की सहायता के लिए अपनाए गए उपायों के अतिरिक्त सरकार उन लोगों पर विशेष ध्यान दे रही है जो गरीबों में गरीब हैं। इनमें अनुसूचित एवं जनजाति जैसे पिछड़े समुदाय के लोग आते हैं। कुल जनसंख्या में इनका अनुपात 20 प्रतिशत के लगभग बैठता है। अधिकांशत: ये ग्रामीण क्षेत्रों में बसे हुए हैं। इनमें बहुत बड़ी संख्या भूमिहीन मजदूरों, दस्तकारों तथा छोटे व सीमान्त किसानों की है। ऐसी व्यवस्था की गई है कि गरीब लोगों के कल्याण के लिए चलाई जा रही स्कीमें ऐसे वर्गों को प्राथमिकता के आधार पर लाभ पहुँचाए। साथ ही अलग से इनके लिए कई विशेष कल्याणमूलक स्कीमें अमल में लाई जा रही हैं जिससे कि इनका आर्थिक स्तर ऊपर उठ सके। प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अन्तर्गत कई योजनाएँ प्रारम्भ की हैं।