साम्प्रदायिक सद्भाव पर निबंध(Sampradayik sadbhav per niband)
साम्प्रदायिकता का अर्थ
साम्प्रदायिकता का अर्थ है अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊँचा मानना और अपने धार्मिक तथा जातीय हितों के लिए राष्ट्रहित से आँख फेर लेना। साम्प्रदायिकता धर्म और जाति के नाम पर घृणा एवं द्वेष का प्रसार है जिससे आदमी आदमी के खून का प्यासा हो जाता है।
भारत में साम्प्रदायिकता का रूप
हमारा देश भारत विभिन्न धर्मों और जातियों का निवास-स्थल रहा है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सभी भाईचारे के साथ यहाँ सदियों से रहते आये हैं। सद्भाव एवं समन्वय भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है।
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का लक्ष्य मानवतावाद एवं 'वसुधैव कुटुम्बकम्' रहा है। यही कारण है कि ' अंग्रेजों ने जब देश में पैर जमाया और देश को चूसने लगे तो हिन्दू और मुसलमान एक साथ उठ खड़े हुए और आजादी की जंग छेड़ दी। अंग्रेजों के लिए यह खतरे की घंटी थी। अतः उन्होंने साम्प्रदायिकता का बीज बोया ताकि वे देश को मनमाने ढंग से लूट सकें।
उन्होंने एक जमात खड़ी की जो लगातार एक-दूसरे सम्प्रदाय के खिलाफ जहर उगलती रही। बस, शुरू हो गई मार-काट, दंगा और अंततः देश दो टुकड़ों में बंट गया। विष वृक्ष अभी तक सूखा नहीं है जिसका नतीजा है कि कभी मुंबई सुलगती है, कभी गोधरा, कभी भागलपुर, कभी असम तो कभी उड़ीसा। हजारों लोग इस साम्प्रदायिकता को भेंट चढ़ गए।क
श्मीर अभी भी नासूर बना हुआ है। धर्मे, राष्ट्र एवं मानवता के विरुद्ध उपाय/डता, राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति एवं आंतरिक सुरक्षा के लिए साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखना अनिवार्य है। हमें सभी धर्मों, संप्रदायों का आदर करना चाहिए, उनके रीति-रिवाजों को श्रद्धा की दृष्टि से देखना चाहिए तथा उनके किसी विधि-विधान में किसी प्रकार का व्यधान नहीं डालना।
उपसंहार
देश की अखण् चाहिए। धार्मिक सहिष्णुता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव किसी भी राष्ट्र की प्रगति में सहायक होते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि साम्प्रदायिकता को राजनीति में हस्तक्षेप करने का अवसर न दिया जाय और राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए सम्प्रदाय या धर्म का दुरुपयोग नियंत्रित किया जाय। अशिक्षा एवं रूढ़िवादिता के कारण विभिन्न सम्प्रदायों में 'सहिष्णुता एवं सद्भाव' का अभाव पाया जाता है, संदेह एवं अविश्वास की भावना, बनी रहती है। रूढ़िवाद, अंधविश्वास तथा परंपरागत कुप्रथाओं का अंत होना चाहिए।