हमारे प्रिय लेखक प्रेमचंद
प्रेमचंद का जन्म बनारस में 1880 ई० में हुआ था। उन्होंने गरीबी को अत्यंत समीप से देखा था। इसलिए उनकी रचना में यथार्थवाद का मूलाधार है। इनका पूर्वनाम धनपत राय था। घर के बुजुर्ग प्यार से नवाब राय भी कहते थे। 1907 ई० में इनकी कहानी का एक संग्रह 'सोजेवतन' प्रकाशित हुआ जिसे तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। फिर 'प्रेमचंद' छद्मनाम से लिखने लगे। 1920 ई० में महात्मा गाँधी के आह्वान पर प्रेमचंद ने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और वे साहित्य - सेवा में लग गए।
प्रेमचंद अपनी रचनाएँ पहले उर्दू में करते और फिर स्वयं ही हिन्दी में अनूदित करते। इसलिए प्रेमचंद को उर्दू और हिन्दी दोनों साहित्य के इतिहास में महान् कथाकार के रूप में मूल्यांकित किया गया है। प्रेमचंद ने तीन सौ कहानियाँ लिखी हैं, जो मानसरोवर (आठ भाग), गुप्त धन (दो भाग) तथा कफन में संकलित हैं। सेवासदन, रूठी रानी, कृष्ण, वरदान, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, मंगलसूत्र, गोदान आदि उपन्यास प्रेमचंद ने 1900 ई० से 1936 ई० के बीच लिखे। संग्राम, कर्बला और प्रेम की वेदी प्रेमचंद के तीन नाटक हैं। उन्होंने दो दर्जन से अधिक बाल पुस्तकों की रचना की है।
प्रेमचंद मुख्यतः कहानीकार तथा उपन्यासकार के रूप से प्रतिष्ठित हैं। इन्हें कथा सम्राट कहा जाता है। प्रेमचंद महाजनी सभ्यता के खिलाफ आवाज उठाते रहे। उन्होंने जमींदारी तथा धार्मिक पाखंडवाद का भी विरोध किया। ये जीवन के यथार्थवाद के प्रबल समर्थक थे। प्रेमचंद कृषि संस्कृति के समुद्धारक थे। उन्होंने नारी जागरण और धार्मिक सहिष्णुता को भी अपनी कथाओं को बिन्दु बनाया है। 1936 ई० में छप्पन वर्ष की अवस्था में प्रेमचंद का निधन हो गया। उन्होंने हिन्दी कथा साहित्य को जासूसी-तिलस्मी अंधकार से निकालकर 'गोदान' की ऊँचाई दी थी।