दुर्गा पूजा पर निबंध। Durga Puja Par Nibandh
भारतीय पर्वों में दुर्गापूजा का अन्यतम स्थान है। यद्यपि यह पूर्वी भारत का प्रमुख उत्सव है, तथापि यह विभिन्न रूपों में समूचे भारत में मनाई जाती है।
पर्व मनाने के पीछे धार्मिक कथाएँ। Religious Stories Behind Celebrating Durga Puja
दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना गया है। वेदों और उपनिषदों में भी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा का उल्लेख मिलता है।
अर्जुन ने दुर्गा का स्तवन किया था। मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत में महाशक्ति चंडिका का गौरवगान किया गया है। राम ने दुर्गा की आराधना की और उनसे अपरिमित बल एवं शौर्य प्राप्त कर रावण का बध किया।
राम की इस विजय की स्मृति में दशहरा (Dussehra) व विजयदशमी (Vijayadashami) का पर्व मनाया जाता है। दुर्गापूजा का पर्व आसुरी प्रवृत्तियों पर दैवी प्रवृत्तियों की विजय का पर्व है।
मनाने का समय। Time To Celebrate
यह पर्व लगातार दस दिनों तक मनाया जाता है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को कलश स्थापन होता है, और उसी दिन से माँ दुर्गा की आराधना शुरू हो जाती है।
सप्तमी तिथि को प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। उस दिन से नवमी तक माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना विधिपूर्वक एवं विशेष सात्विकता के साथ की जाती है।
उपसंहार
दुर्गापूजा सांस्कृतिक पर्व (Cultural Festival) है। माँ दुर्गा की आस्थपूर्ण आराधना-अर्चना करने से हमारे संस्कार परिशुद्ध एवं सात्त्विक होते हैं।
आस्था, भक्ति, पवित्रता, सात्विकता, आत्मिक उल्लास एवं आध्यात्मिक उन्नयन के इस पर्व को वैभव-प्रदर्शन से कभी दूषित नहीं करना चाहिए।
चिंता का विषय यह है, कि इस पर्व से आस्था का रंग उड़ता जा रहा है, और आडंबरप्रियता बढ़ती जा रही है। दुर्गा शक्ति की देवी है। हमें उनसे शारीरिक, बौद्धिक, वैचारिक एवं आध्यात्मिक शक्ति की माँग करनी चाहिए ताकि हम समाज और राष्ट्र का कल्याण कर सकें।