बेरोजगारी की समस्या पर निबंध। Berojgari Ki Samasya Par Nibandh
बेकारी की स्थिति
भारत आज जिन समस्याओं से घिरा है, उनमें सबसे जटिल समस्या है : बेकारी; और ताज्जुब तो यह कि इसे सुलझाने की जितनी कोशिशें होती हैं, यह उलझती जा रही है।
एक वाक्य में कहें तो कहेंगे : मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।
बेकारी की समस्या यूँ तो सारे मुल्कों में थोड़ी-बहुत है, लेकिन अपने यहाँ इसका रूप बिकराल है।
सन् 1956 में सिर्फ 7.6 लाख लोग बेकार थे, सन् 1977 ई० में इसमें पाँच गुनी वृद्धि हुई और आज यह सौगुनी है।
यह तो दर्ज आँकड़ों के आधार कह सकते हैं। लेकिन वास्तविक संख्या इससे भी ज्यादा है, क्योंकि सभी लोग रोजगार-दफ्तर में अपना नाम दर्ज नहीं कराते।
ग्रामीण तो बिल्कुल ही रोजगार कार्यालयों का लाभ नहीं उठाते। अर्द्ध बेरोजगार लोगों की तो बात ही अलग है।
बेकारी का परिणाम
बेकारी की समस्या से जुड़ी अनेक और समस्याएँ हैं। बेकारी से गरीबी पनपती है, अपराध बढ़ते हैं, मनुष्य का मनोबल टूटता है, और टूटा हुआ आदमी देश को भी तोड़ने को कभी-कभी तैयार हो जाता है।
यह विषम चक्र है। प्रश्न उठता है, कि बेकारी के क्या कारण हैं?
पहला कारण है : जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि।
बेतहाशा वृद्धि से बेकारी दूर करने की योजनाएँ धरी की धरी रह जाती हैं। योजना बनती है, पचास लाख को रोजगार देने की और तब तक बेरोजगारों की संख्या में पाँच लाख का इजाफा हो जाता है।
दूसरा कारण है : अनुपयुक्त शिक्षा।
जिससे पढ़ लिखकर लोग बगा-बूगिरी के लायक ही बनते हैं। रोजगार परक उपयुक्त शिक्षा होती और इसके बुनियादी साधन जुटाए जाते तो यह नौबत नहीं आती। कुटीर उद्योगों के प्रति अरुचि और पैतृक व्यवसाय से घृणा ने भी इस आग में घी का काम किया है।
बेकारी का कारण
त्रुटिपूर्ण शिक्षा और कुटीर उद्योगों के समुचित विकास न होने के अलावा एक कारण और है : परंपरागत ढंग से कृषि और कृषि योग्य भूमि का विकास न होना।
हमारी अर्थव्यवस्था भी बेकारी बढ़ाने में कम दोषी नहीं है। लघु उद्योगों को समुचित प्रोत्साहन नहीं मिलता। इसमें भ्रष्टाचार व्याप्त है। फिर बाजार में काले धन की मौजूदगी भी बेकारी का कारण है।
बेकारी का निदान
बेकारी की समस्या दूर करने के लिए जनसंख्या नीति बनाकर दढ़ता से अमल करना होगा।
रोजगार मूलक शिक्षा के साथ-साथ युवकों को आधारभूत सुविधाए देनी होंगी और नये बाजार खोजने होंगे।
श्रम के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा।
उपसंहार
यह ठीक है, कि सरकार ने इधर ध्यान दिया है, और स्वनियोजन कार्यक्रम आरंभ किए गए हैं। ऋण की शर्तें उदार की गई हैं, और निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, लेकिन समस्या की गंभीरता के आगे यह 'ऊँट के मुँह में जीरा है।'
सरकार को इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना होगा।